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Monday, October 21, 2013

यात्रा

 अनुराग हैदराबाद के नामपल्ली रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में  बैठकर प्रेमचंद का मशहूर उपन्यास गोदान बड़ी तल्लीनता से पढ़ रहा था| स्टेशन पर चारों ओर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। वेटिंग रूम में  वह  अकेला नहीं था, कुछ लोग उससे पहले से बैठे थे, कुछ लोग आ रहे थे। उसने अपने चारों ओर नज़र दौडाई वहां चारों तरफ भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी, परंतु  इस  भीड़ में हर एक व्यक्ति  अकेला नज़र आ रहा था। किसी को किसी और की सुध नहीं।  उसने वेटिंग रूम के बाहर इधर-उधर देखा, चाय की दुकान, फल की दुकान, मैग्ज़ीन कार्नर और जगह-जगह पानी पीने के नल, हर जगह विशाल जन समूह। सभी लोगों को जल्दी हो रही थी, किसी की ट्रेन प्लेटफार्म  पर खडी है उसे उसमें चढ़ने की जल्दी है, कोई ट्रेन से उतारा है उसे अपने घर जाने की जल्दी है|  इस भीड़ में हर कोई पहले अपनी मंजिल की तरफ जाना चाहता है| प्लेटफ़ॉर्म पर चारो तरफ भागा-दौड़ मची थी|
तभी उद्घोषणा हुई कि आन्ध्र प्रदेश एक्सप्रेस निश्चित समय से बीस मिनिट के विलंब से चल रही है। अनुराग को इसी ट्रेन की प्रतीक्षा थी, ट्रेन के आने में विलम्ब को सुनकर वह निराश हो गया| वह कर भी क्या सकता था? बीस मिनिट के अंतराल के पश्चात ट्रेन प्लेटफार्म एक पर आ गई| वह अपनी बोगी में जाकर सीट पर जा बैठा| गर्मी का मौसम में ए.सी. की ठंडी हवा मिल जाए तो क्या कहना| थोड़ी देर में ट्रेन ने  हैदराबाद का नामपल्ली स्टेशन छोड़ दिया। ट्रेन चलने के कुछ समय बाद उसने अपने बैग से एक किताब निकाली उस किताब में रखी एक तस्वीर को निहारने लगा, तस्वीर को निहारते –निहारते उसकी आँख लग गई .....वह अपने परिवार के साथ केदारनाथ जाने की तैयारी में लगा है –
अनुराग – अरे सुमित क्या हुआ तुम अभी तक तैयार नहीं हुए ...?
सुमित – नहीं पापा मुझे नहीं जाना ......
अनुराग – अब क्या हुआ तुम्हें .....कल तक तो तुम लोग केदारनाथ जाने के लिए जिद्द किये बैठे थे....
सुमित- हाँ पर न जाने क्यों मेरा मन नहीं कर रहा आप लोग चले जाओ .....मैं यहीं रहता रहता हूँ|
सुमित की बातें सुनकर अनुराग ने अपनी पत्नी हेमा को बुलाया| कुछ देर में हेमा उस कमरे में आ गई जहाँ सुमित और अनुराग बातें कर रहे थे|
हेमा – क्या बात है ....
अनुराग- सुनों तो सुमित क्या कह रहा है ....कह रहा है की वह हमारे साथ केदारनाथ नहीं चल रहा .....
हेमा – क्या हुआ तुम्हें ....कल तक तो तुम बड़े उत्साहित थे ..आज क्या हो गया?
सुमित – पता नहीं माँ पर मेरा मन नहीं कर रहा ....
हेमा – ये भी तुम्हारी कोई बात हुई ....अब जब चलने का समय हुआ तुम्हारा मन नहीं कर रहा.... चलो तैयार हो जाओ| घर पर तुम अकेले बोर हो जाओगे .....
सुमित का मन न होते हुए भी वह अपने माता-पिता के साथ केदारनाथ की यात्रा के लिए  चल दिया| रास्ते में ऊँचे-ऊँचे पहाड़, नदी, तालाबों को देखकर सुमित ने मन ही मन सोचा –अच्छा किया जो मैंने मम्मी-पापा की बात मान ली और उनके साथ आ गया नहीं तो यह सब कैसे देखने को मिलता| दूसरे दिन वे लोग केदारनाथ जा पहुंचे| वहां चरों तरफ बम भोले के जयकारे सुनाई दे रहे थे| सभी श्रद्धालु जल्द से जल्द भोले के दर्शन करने की लालसा लिए भोले बाबा का जयकारा लगा रहे थे| घंटों कतार में खड़े रहने के बाद अनुराग और उसके परिवार ने भोले बाबा के दर्शन किये उनके दरबार में माथा टेका| कुछ समय बाद वे लोग मंदिर से बाहर आ गए| मंदिर से बाहर आकर उन्होंने वहां के दर्शनीय स्थलों को देखने का मन बनाया| वहां से उन्होंने एक कार किराए पर लेकर चले गए| ऊँचे –ऊँचे पहाड़ चारों तरफ हरियाली ही हरियाली सुनसान रास्ते बल खाती सड़कें | करीब एक घंटे के सफर के पश्चात वे लोग एक दर्शनीय स्थल पर जा जा पहुंचे| कार को छोड़कर वे लोग पहाड़ पर जा पहुंचे| पहाड़ पर खड़े होकर सभी लोग एक दूसरे की फोटो खीच रहे थे| पहाड़ के ऊपर से धरती का नज़ारा अद्भुद नजर आ रहा था, पहाड़ों की चोटियों से गिरता पानी का झरना| वहां से देखने पर लग रहा था जैसे धरती पर हरे रंग की चादर बिछी हो| जहाँ भी नज़र जाती वहां हरियाली ही हरियाली नज़र आ रही थी| कितना मनोहर दृश्य था वह....| हर कोई उस दृश्य को अपने- अपने कैमरे में कैद कर लेना चाह रहा था| अचानक मौसम में ऐसा बदलाव आया कि लोग कुछ समझ ही नहीं पाए| खराब होते मौसम के कारण वहां पर आए सभी पर्यटकों में खलबली मच गई| हर कोई जल्द से जल्द वहां से बाहर सुरक्षित स्थान पर जाना रहा था|
अनुराग भी अपने परिवार के साथ सुरक्षित स्थान की तलाश में वहां से चल दिया| वे लोग कुछ दूरी पर गए ही होंगे की अचानक पहाड़ की छोटी से तेज बहाव से साथ पानी आता दिखाई दिया| तेज बहाव से आते पानी को देखकर सभी लोग जल्द से जल्द किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचना चाह रहे थे| सुरक्षित स्थान की खोज में जाने के कारण वे लोग रास्ता भटक गए| धीरे-धेरे रात का अन्धेरा चारो तरफ छाने लगा| अन्धेरा बढ़ रहा था और ये लोग जंगल में रास्ता भटक गए थे| रात के करीब नौ बजे होंगे कि तेज बारिश शुरू हो गई| एक तो रास्ता भटके लोग उस जंगल से बहरा जाने का रास्ता खोज रहे थे दूसरी तरफ तेज बारिश ने उनकी और मुसीबत खडी कर दी थी| तेज बारिश से बचने के लिए जिसे जिस पेड़ के नीचे शरण मिली वह वहीं अपने लोगों के साथ खड़ा हो गया|  पेड़ भी कितनी देर बारिश के पानी को रोक सकता है| बारिश कम होने के स्थान पर धीरे –धीरे ओर तेज़ होती जा रही थी| बढ़ते तूफ़ान में सभी की साँसे अटकी हुई थी| रह रहकर तेज़ कडकडाती बिजली.....| पानी का बहाव पहाड़ पर बढ़ता ही  जा रहा था| अनुराग अपने परिवार के साथ के विशालकाय वृक्ष के नीचे खडा था| तेज बारिश के कारण सभी लोग पूरी तरह से भीग चुके थे|  बारिश में भीगते रहने के कारण उनका शरीर ठण्ड से कांपने लगा लागा था| चारो तरफ अँधेरा ही अन्धेरा
सुमित- मम्मी अब क्या होगा ....?
हेमा – कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जाएगा ....थोड़ी देर में बारिश बंद हो जाएगी ..और हम लोग .....
अनुराग – सब ठीक हो जाएगा ...घबराओ मत ...भोले नाथ सब ठीक करेंगे .....
किसी तरफ वह भयानक काली रात कटी| सुबह होते होते पानी का बहाव और तेज़ हो चुका था, इधर पानी का बहाव बढ़ता जा रहा था उधर बारिश है की थमने का नाम ही नहीं ले रही थी| इस दृश्य को देखकर हर किसी का मन किसी अनहोनी की आशंका से काँप उठता| सारी रात पानी में खड़े रहने और भीगने के कारण हेमा की तबीयत खारब होने लगी|  
हेमा – ठण्ड से कापती आवाज़ में सुनिए जी ...अब मुझसे और नहीं चला जा रहा ....
अनुराग – हिम्मत रखो सब ठीक हो जाएगा ...थोड़ी-बहुत देर में रास्ता मिल ही जाएगा......घबराओ मत ...कहते हुए उसका गला भर आया|             
सुमित – माँ ..सब ठीक हो जाएगा ...हम जल्दी ही इस जंगल से बाहर निकल जाएगे ....हेमा ने सुमित की तरफ देखा और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली –
हेमा – अ...हाँ ...हाँ सब ठीक हो जाएगा....कहते हुए उसकी आँखों से आंसू छलक आए....
इधर हेमा की तबीयत खाराब हो चुकी थी उधर दूसरे लोग जंगल से बाहर निकलने के लिए रास्ता खोजने की जी जान से कोशिश कर रहे थे| चारों तरफ एक डर का माहौल था हर किसी के चेहरे पर एक अनजान अनहोनी की छाया साफ़ देखी जा सकती थी| अनुराग और सुमित ने हेमा के दोनों हाथ अपने-अपने कन्धों पर रखकर उसे सहारा देखे हुए रास्ते की खोज में चल दिए| इस तरह भटकते-भटकते सुबह से शाम हो चुकी थी लेकिन रास्ते का कहीं नामोनिशान न था| दो दिन के भूखे-प्यासे सभी लोग अब चलने में अपने आप को असमर्थ महसूस कर रहे थे| थक हार कर एक चट्टान पर बैठ गए| जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे-वैसे हेमा की तबीयत भी खराब होती जा रही थी| दो दिन से पानी में भीगने के कारण सुमित की तबीयत भी खराब होने लगी थी| सुमित ने अपने बिगड़ते स्वास्थय का आहास अपने माता- पिता को नहीं होने दिया| उसने किसी न किसी तरह अपने आप को संभाले रखा...लगातार अपनी माँ को हौसला बनाए रखने को कहता रहता .......| इन दो दिनों के हालातों को देखकर हेमा को आभास हो गया था की शायद अब वह नहीं बचेगी| शायद हेमा का आभास सही था.....उसने दो दिन और दो रातें किसी न किसी तरह काट दी लेकिन तीसरे दिन तक आते आते  उसकी साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया| हेमा को मृत देखकर अनुराग और सुमित के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई ...
सुमित – माँ .....माँ ...आँखे खोलो ......पापा देखों ना माँ को .....कुछ बोल नहीं रही ....माँ ..माँ कुछ बोलो ना ......सुमित माँ के शव से लिपटकर फफक-फफकर रोने लगा ....
हेमा को मृत देखकर अनुराग का भी अपने आप पर काबू न रख सका वह भी फूट-फूटकर रोने लगा| काफी देर रोने के बाद अनुराग ने सुमित को अपने सीने से लगाकर चुप कराया| जैसे उसने सुमित को अपने सीने से लगाया उसने देखा कि उसका बदन तो आग के अंगारे की तरफ तप रहा है| 
अनुराग –अरे ...तुम्हें तो तेज़ बुखार है.........
सुमित को अभी अपने बुखार का कोई ख्याल नहीं आ रहा था वह बार-बार माँ...माँ कहकर रोए जा रहा था| अनुराग उसे बार –बार धीरज बंधाता लेकिन......... सारा दिन रोते-रोते गुजर गया| शाम तक तो आँखों से आंसूं भी सूख गए|  सारा दिन माँ की मृत्यु पर विलाप करते-करते सुमित की तबीयत और खाराब होती जा रही थी| एक तरफ मृत पत्नी दूसरी तरफ जवान बेटे का बिगड़ता स्वास्थ्य.... | बारिश है की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी| दोनों बाप बेटे चौबीस घंटे उस शव के पास ही बैठे रहे| इधर दूसरे लोग रास्ते की खोज में लगे हुए थे| चौबीस घंटे के बाद शव फूलने लगा| दोनों बाप-बेटे उस शव के पास शोकातुर बैठे थे| तभी एक व्यक्ति ने उन्हें  आवाज दी– भाई साहव इस शव के साथ बैठे रहोगे तो थोड़ी बहुत देर में आप लोग भी शव  बन जाओगे......मेरी बात मानिए इसे यही छोड़कर  यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता खोजिए| अनुराग को उस व्यक्ति की बात समझ में आई ....उसने सुमित को वहां से चलने का आग्रह किया लेकिन सुमित मृत माँ को इस प्रकार लावारिश छोड़ने को कतई तैयार नहीं था| 
अनुराग – चलो बेटा ........शायद ईश्वर को यही मंजूर है .....कहते हुए वह भी फूट-फूटकर रोने लगा...
सुमित – नहीं ....पापा .....मम्मी को यहाँ छोड़कर नहीं जा सकते .......मम्मी ......उठो ना.....चलो .....हमारे साथ|
अनुराग ने सुमित को अपनी छाती से लागा लिया| उसे समझाया कि उसकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही| उसे अब अपनी जान बचाने के लिए यहाँ से आगे चलना ही होगा| सुमित है की मानने को तैयार ही नहीं हो रहा था| इधर उसका भी स्वास्थ्य हर पल बिगड़ता जा रहा था| किसी न किसी तरह अनुराग उसे समझकर वहां से भारी मन से आगे चल पडा.....आगे चल तो रहा था लेकिन बार –बार पीछे मुड़कर अपनी मृत पत्नी को देखता जा रहा था| उसके कदम आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं हो रहे थे लेकिन बेटे को सुरक्षित स्थान पर ले जाना  भी है यही सोचकर बाप-बेटे सारा दिन उस जंगल में भटकते रहे लेकिन रास्ता कहीं नहीं मिला| तीन दिन से भूखे-प्यासे होने के कारण उनमें अब और चलने की ताकत नहीं थी| बेटे का पल बिगडती हालत को देखकर अनुराग की समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरफ अपने बेटे की जान बचाए| पत्नी को तो वह पहले ही खो चुका है अब बेटे को .........सोचकर ही उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं| अब तक अपने आप को संभाले रखने वाला सुमित अपनी खाराब होती हालत से और लड़ने में असमर्थ होता नज़र आ रहा था| धीरे –धीरे उसकी आँखें बंद हो रही थी| अनुराग से उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी| उसने जीवन में कभी आपने आप  को इतना लाचार नहीं पाया था जितना आज ...... 
अनुराग – सुमित .....बेटा हिम्मत रखो सब ठीक हो जाएगा .....भगवान कोई न कोई रास्ता ज़रुर निकालेंगे ...बस तुम हिम्मत मत हारों कहते हुए वह उसके लिपट कर रोने लगा .......|
सुमित – पा.....प ..पापा ....मुझे बचा लो....पापा बचा लो मुझे .....मैं जीना चाहता हूँ .....म ....म...मैं मरना नहीं चाहता .....
अनुराग – सब ठीक हो जाएगा ...मरने की बात मत बोल मेरे बच्चे .....तुम लोगों के बिना मैं कहते...कहते वह सुमित को अपने सीने से लगाकर बिलख-बिलखकर रोने लगा......अब भी उसका शरीर अंगारे की तरह  तप रहा था......
अनुराग ने उस दिन सभी देवी-देवताओं से अपने बेटे के जीवन की भीख माँगी| हर पल बेटे की हालत नाजुक हो   जा रही थी| ठण्ड में ठिठुरते --ठिठुरते वह रात भी कटी लेकिन पानी में भीगने और ठण्ड के कारण बेटे की साँसें टूट रही थी वह उसे झूठा दिलासा दे रहा था, उसे मौतसे लड़ने का हौसला दे रहा थ| वह भी भूखा-प्यासा कितना मौत से लड़ता आखिरकार उसकी साँसों ने भी उसका साथ छोड़ दिया| पहले पत्नी की मृत्यु फिर जवान बेटे की मृत्यु ने अनुराग को पुरी तरह से झकझोर रख दिया| उसने जीवन में कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उसके जीवन में ऐसी भी स्थिति आएगी| वह सारी रात बेटे के शव के साथ बैठा रहा| अगले दिन जब बारिश बंद हुई तो कुछ फ़ौज के सैनिक खोजते हुए वहां तक पहुँचे|  
फ़ौजी- चलिए आप यहाँ से चलिए ..
अनुराग – भाई साहब मेरे बेटे को भी ले चलिए ....ना
फ़ौजी – देखिये अभी फिल हाल तो हम जीवित लोगों को ही साथ ले जा सकते हैं ...जो मृत हैं उन्हें बाद में ले जायाजेगा ....आप जल्दी चलिए समय बहुत कम है और वैसे भी मौसम खराब होता जा रहा है|
अनुराज – नहीं मैं अपने बेटे को छोड़कर नहीं जाऊँगा .....  
फौजियों के बार-बार समझाने पर अंत में उसने दिल पर पत्थर रखकर उसे वहीं छोड़ दिया| वह और कर भी क्या सकता था..........|
अचानक शोर से उसकी आखें खुली तो उसने अपने आप को ट्रेन की बोगी में पाया| उसे बेटे की वह बात याद आने लगी जब उसने केदारनाथ जाने से पहले कही थी| वह जाना नहीं चाहता था| काश उसने उसकी बात मान ली होती तो शायद आज उसका बेटा उसके पास होता| पत्नी और बेटे को याद कर उसकी आँखें नम हो आई| दूसरे दिन सुबह दस बजे ट्रेन नई दिल्ली पहुँच गई

Tuesday, September 24, 2013

आ अब लौट चलें




पूरे एक साल के बाद गणेश चतुर्थी का दिन फिर से आया| पूरे शहर ने बड़े-बड़े पंडालों का निर्माण किया गया है| इन्हीं पंडालों में गणेश जी  की मूर्तियों को बिठाया जाएगा| सुबह से ही भक्त उन्हें अपने-अपने घर ले जाने लगे| मूर्ती की आँखों पर नया रुमाल बाँध दिया और ले कर चल दिए| धीरे-धीरे शाम होने लगी गणेश जी की पूजा का शोर शहर में चारों ओर फैलने लगा| बाज़ारों की चकाचौंध  और घरों की साज सजावट देखकर गणेश जी बहुत प्रसन्न थे| पहला दिन तो उनकी पूजा आराधना में निकल गया| जैसे ही दूसरी रात का आलम देखा वैसे ही गणेश जी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया| गणेश जी को क्रोध में देखकर मूषक राज ने उन्हें शांत रहने की गुहार लगाई|  जैसे-तैसे करके उसने गणेश जी को शांत किया और बताया कि वे यहाँ पर दस दिन के मेहमान हैं| अब तो उन्हें यह सब देखना और सहना ही होगा|मूसक की बातें सुनकर गणेश जी थोड़ा मुस्कुराए और बोले, हाँ मूषक यह सब तो मुझे देखना ही है ...पर क्या संसार में बस यही सब देखना बाकी है|  

सुनकर गणेश जी की बातें मूषक भी मुस्कराया और बोला – प्रभु यह  तो कुछ नहीं, यह  तो सिर्फ फिल्म का एक सीन है  अभी पूरी फिल्म तो बाकी है| आज तो पंडालों में सिर्फ आपने रीमिक्स गाने सुने हैं| अभी तो न जाने इन दस दिनों में क्या–क्या देखना और सुनना बाकी है| इसी तरह तीसरा दिन भी आया भक्तों ने सुबह की आरती की और भोग चढ़ाया| धीरे-धीरे दिन का सूरज ढल गया| धीरे-धीरे रात का अँधेरा चारों तरफ फैल गया| गणेश पंडालों के पास चहल-पहल बढ़ चुकी थी| भक्तों की भीड़ को देखकर गणेश जी खुश थे सोच रहे थे कि आज की शाम उनके भक्त किसी कीर्तन का आयोजन करने वाले हैं| भजन कीर्तन  की जगह जब मुन्नी बदनाम होने लगी और शीला की जवानी चढ़ने लगी के संगीत को सुनकर गणेश जी को मूर्छा आने लगी| किसी तरह मूषक राज ने उन्हें सँभाला| होश में आते ही वे  मूषक राज से बोले क्या भक्तों ने मुझे यही सब देखने और सुनाने के लिए बुलाया है?
 
गणेश जी की बातों को सुनकर मूषक कुछ मुस्कुराकर बोला  प्रभु आज तो सिर्फ संगीत ही सुना है आगे –आगे देखिए होता है क्या....? दोनों की बातों के बीच जोर से चीखने की आवाज सुनाई दी| गणेश जी थोड़ा घबराकर मूषक से बोले  लगता है हमारा कोई भक्त मुसीबत में है?  गणेश जी की बातें सुनकर मूषक ने मुस्कुराते हुए उन्हें बताया प्रभु आपके भक्त पर संकट नहीं यह तो देवलोक में शम्मी कपूर की आत्मा है| जो यहाँ के संगीत को सुनकर देवलोक में भी नाचने लगा है| तीसरे दिन की शाम भी किसी न किसी तरह बीती|

इसी तरह एक दिन बीता दो दिन बीता, बीते गए चार पाँच दिन| आज सातवाँ दिन है| सुबह से पंडाल के लोगों के इलाके के नेता का इंतजार है| आज तो गणेश जी को भोग भी तभी लगेगा जब नेता जी का पदार्पण होगा| आज नेता जी का हाल ना पूछो| ए. सी कमरे में बैठे संगीत का लुत्फ उठा रहे थे| जब कमरे में आकर सेवक ने सूचना दी तो उन्हें याद आया| आज रात गणेश जी का भोग उन्हें ही तो लगाना है| आठ बजे का कार्यक्रम तय हुआ था| नेता जी अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए नौ बजे जा पहुँचे| इस देश में इन्सान तो इन्सान भगवान को भी नेताओं का इंतजार करना पड़ता है| आज उनकी अनुकंपा से ही गणेश जी को रात्री भोग नसीब होगा...., उनके द्वारा शुरू की गई आरती के बाद ही अन्य कार्यक्रम होंगे|

आज सुबह से ही गणेश जी बहुत खुश हैं| अब तो अपने घर जाने का एक दिन ही शेष बचा है| आज की रात  शांति से निकल जाए बस ...| शाम होते-होते बड़े-बड़े- लाउड स्पीकर स्पीकरों की कतारों को देखकर गणेश जी ने मूषक राज से पूछा – लगता है आग यहाँ पर बड़ा सत्संग होने वाला है| जैसे-जैसे रात होने लगी वैसे-वैसे एक-एक कर लोगों की भीड़ जमाँ होने लगी| कुछ ही देर में जब गणेश जी की आरती शुरू हुई यह देखकर वे बहुत खुश हो गए| उन्हें लगा चलो कम से कम जाने से पहले ही सही मनुष्य ने कुछ सही काम किया| तभी गणेश जी की नजर मंच पर आधे वस्त्रों में  सुसज्जित स्त्री पर गई| उसे अपनी तरफ आते देखकर गणेश जी घबराए और मूषक से बोले लगता है जल्दी-जल्दी में यह भक्त अपना दुपट्टा घर पर ही भूल आई| आकर उसने उन्हें नमन किया और नृत्य के लिए तैयार हुई| गणेश जी को लगा कि किसी भी कार्यक्रम को शुरू करने से पूर्व सभी लोग उनकी वंदना करते हैं तो यह भी वही कर रही होगी| यह सोचकर वे बहुत प्रसन्न थे लेकिन ... जैसे ही गाने की धुन ‘चिकनी चमेली सुनते ही गणेश जी का क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुँचा| गणेश जी को क्रोधित होता देखकर मूषक ने बात किसी तरह संभाली| अब तो जो नाच का सिलसिला चला एक के बाद एक ठुमके लगे| लग रहा था मानो गणेश पंडाल नहीं किसी की शादी का रिसेप्सन हो रहा है| आखिर किसी न किसी तरह वह भयानक रात भी बीती|

आज तो गणेश जी सुबह से ही खुश हैं| आज उन्हें घर जो जाना है| लेकिन अचानक उनकी खुशी एक चिंता में बदल गई| मूषक राज ने गणेश जी को उदास देखा तो पूछ लिया प्रभु आपकी उदासी का क्या कारण है? मूषक की बात सुनकर गणेश जी बोले–पता नहीं आज फिर मुझे विसर्जित होने के लिए साफ जल नसीब होगा कि नहीं? या फिर उसी गंदगी भरे नाले में मुझे नाक बंद करके डुबकी लगानी होगी? मूषक ने उन्हें समझाया कोई बात नहीं बस दो मिनिट की ही तो बात है, नाक बंद करके आप जल समाधि ले लेना उसके बाद तो फिर एक साल की बारी गई| अगले साल की अगली साल सोचेंगे| तभी मूषक राज को ख्याल आया उसने गणेश जी ने निवेदन किया प्रभु अगर आप आज्ञा दें तो मैं आपसे कुछ कहूँ| गणेश जी ने उसे बोलने की आज्ञा दी| मूषक ने कहा कि क्यों न इस गंदे पानी की समस्या को इंद्र देव के सामने रखें| अगर वे चाहें तो कुछ ही मिनिटों में वर्षा से इस गंदगी को स्वच्छता  में बदल सकते हैं| मूषक की बातें सुनकर गणेश जी मुस्कुराए और बोले तुम्हारा विचार तो सही है लेकिन क्या तुमने सोचा है कि इस बिन मौसम की बरसात से मेरे गरीब भक्तों को कितनी परेशानी होंगी, जिनकी सच्ची भक्ति है मुझ में उन्हें परेशानी होगी| गणेश जी की बातें सुनकर मूषक राज ने कहा ‘धन्य हैं प्रभु आप.......इसी लिए तो विघ्नहर्ता हैं आप..’| मूषक की बातें सुनकर गणेश जी मंद-मंद मुस्कुराए और शांत मुद्रा में बैठ गए| जैसी कि उन्हें आशंका थी इस बार भी भक्त उन्हें उसी गंदे पानी में विसर्जित करेंगे वैसा ही हुआ| इस बरस सब की मनोकामनाओं को पूरा करके वे अपने घर चले गए|  

जाते- जाते एक समस्या की को ध्यान दिलाते गए कि इस संसार में ऐसी गंदगी कब तक ....? जिस पानी में व्यक्ति अपना हाथ नहीं डाल सकता उस में अपने इष्ट देव को कैसे विसर्जित कर सकता है| अगर व्यक्ति आज भी इस समस्या के प्रति नहीं जागा तो हो सकता है निकट भविष्य में उसे और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पद सकता है|    

Thursday, February 14, 2013

संघर्ष

                                               
        चौबीस साल की सोनल की आँखें आज भी उन चार दीवारों के बीच कुछ खोजती, उनसे बातें करती रहती| उसके मन में एक सवाल था, एक कशमकश थी जिसका  जवाब उसे आज तक नहीं मिल सका था| सोनल को इस मानसिक रोगी अस्पताल में आए हुए करीब एक साल बीत चुका था| इस एक साल में उसने मुश्किल से किसी से बात की होगी| दिन-रात अकेले बैठी कमरे की दीवारों में ही खोई रहती|   पांच साल की उम्र में अपने माता-पिता और दो छोटी बहनों के साथ डगनिया नामक गाँव से दिल्ली आई थी| माता-पिता देहाती मजदूर थे| वह परिवार में सबसे बड़ी थी|  सोनल के माता-पिता के मन में एक टीस थी कि ईश्वर ने उन्हें बेटा क्यों नहीं दिया| अगर बेटा होता तो कम से कम उनके बुढ़ापे का सहारा होता| बेटियाँ जब बड़ी हो जाएँगी अपनी-अपनी ससुराल चली जाएँगी| ऐसा नहीं था कि सोनल के माता-पिता अपनी बेटियों से प्यार नहीं करते थे| वे अपनी तीनों बेटियों से बहुत प्यार करते थे| दिन में जब माता-पिता काम पर चले जाते तब छोटी बहनों को संभालने की जिम्मेदारी सोनल की रहती| वह घर पर ही रहकर अपनी बहनों की देख रेख करती उनके साथ खेलती-कूदती| उनकी बस्ती के पास एक पार्क था| अकसर वह अपनी बहनों के साथ इसी पार्क में खेलती थी| यहाँ वह स्कूल जाते बच्चों को देखती, कंधों पर बैग उसमें पानी की रंग-बिरंगी बोतल| बच्चों को स्कूल जाते देखकर उसका भी मन करता कि वह भी स्कूल जाए और पढ़-लिखकर डॉक्टर बने| उसने कई बार अपने माता-पिता से उसे स्कूल भेजने की बात कही| माता-पिता ने उसकी कही बातों पर कोई  ध्यान नहीं दिया| सोनल ने इसे ही अपनी नियति मानकर जीवन से समझौता कर लिया था| लेकिन उसका मन था कि यह स्वीकारने को तैयार नहीं था कि वह इस तरह से अपने जीवन से समझौता करे| आखिर पढ़ने-लिखने का उसका भी अधिकार है पर पढ़े-लिखे कैसे? यह सबसे बड़ा प्रश्न था|   

        एक दिन की बात है वह अपनी छोटी बहनों के साथ पार्क से घर लौट रही थी| रास्ते में एक झोपड़ी के पास कॉलेज के बच्चों की हलचल  देखकर वह उस झोपड़ी के पास चली गई| वहाँ पर कॉलेज के बच्चे गरीब बच्चों को पढ़ा रहे थे| सोनल और उसकी बहनों को झोपड़ी के बाहर खड़ा देखकर पूर्णिमा नाम की छात्रा ने उन्हें अंदर बुला लिया| उसने उनका नाम पूछा सोनल ने अपना और अपनी दोनों बहनों के नाम बताए| जब उसे पता चला कि पूर्णिमा और उसके दोस्त इस बस्ती में गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए रोज आते हैं तब उसने भी अपने पढ़ने की इच्छा पूर्णिमा को बताई| उसके पढ़ने की इच्छा को जानकर पूर्णिमा ने उसे और उसकी दोनों बहनों को एक-एक नोटबुक और पेंसिल देते हुए कहा कि वे लोग कल से रोज पढ़ने के लिए यहाँ आया करें| पढ़ने की बात सुनकर एक पल के लिए सोनल को लगा जैसे ईश्वर ने उसकी मन्नत पूरी कर दी हो|  दिन में जब उसके माता-पिता काम के लिए चले जाते वह अपनी दोनों बहनों को लेकर पढ़ने के लिए चली जाती|

      समय के साथ- साथ सोनल और उसकी बहने बड़ी हो रही थीं| कुछ वर्षों तक पूर्णिमा और उनके दोस्तों ने उन गरीब बच्चों को पढ़ाया| बच्चे भी बड़ी लगन से पढ़ रहे थे| कुछ सालों के बाद पूर्णिमा और उसके दोस्तों का उस बस्ती में आना बंद हो गया| सोनल का पढ़ने का सपना टूट गया| इन दिनों में वह थोड़ा बहुत पढ़ना-लिखना सीख चुकी थी| वह आगे भी पढ़ना चाहती थी लेकिन ऐसा हो न सका| एक दिन सोनल के पिता एक दुर्घटना का शिकार होकर इस संसार से चल बसे| पिता की दुर्घटना का माँ के दिल दिमाग पर गहरा असर पड़ा| वह अपने होशहवास खो चुकी थी| पति के गम में उसका मानसिक संतुलन खराब हो गया| माँ के पागल हो जाने के कारण उसे शहर के सरकारी मानसिक रोगी अस्पताल में भर्ती करवा दिया था| घर  में कमाने वाला कोई नहीं था| मात्र पंद्रह साल की  छोटी उम्र में घर-परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उसके कंधों पर आ गया|
 घर का खर्च चलाने के लिए उसने नौकरी की तलाश शुरू कर दी| अधिक पढ़ी-लिखी न होने के कारण वह जहाँ भी जाती निराशा ही हाथ लगती| वह भी हार माने वाली कहाँ थी लगातार कोशिश करती रही| आखिर उसे एक कम्पनी में चपरासी (आया) की नौकरी मिल गई| नौकरी तो मिल गई लेकिन अधिक पढ़ी-लिखी न होने के कारण उसे तरह-तरह की बातें सुननी पड़ती| वह दिन-रात मेहनत से काम करती| इतनी मेहनत से काम करने के बाद भी उसका सुपरवाईजर उसके कामों में कोई न कोई कमी निकाल ही देता| इस तरह एक साल निकल गया| एक दिन उसे ऑफिस में काम खत्म करने में देरी हो गई, उसके अन्य साथी जल्दी काम खत्म करके जा चुके थे| जब वह अपना काम खत्म करके घर जाने लगी तभी उसके सुपरवाईजर ने उसे अपने कैबिन में बुलाया और बैठने के लिए कहा वह जाना चाहती थी लेकिन कुछ जरूरी काम होने की बात कहकर उसे पास ही रखे सोफे पर बैठने के लिए कहा| वह बेचारी डरी सहमी सी जाकर बैठ गई| कुछ देर बातें करने के बाद जैसे ही वह जाने लगी वैसे ही सुपरवाईजर ने उसका हाथ पकड़कर सोफे पर धकेल दिया| उसने अपनी आत्मरक्षा में हाथपैर चलाए, चीखी-चिल्लाई लेकिन उसकी चीख़ों को सुनने वाल वहाँ कोई नहीं था| सुपरवाईजर देर रात तक उसका बलात्कार किया| बलात्कार के बाद उसे धमकी दी गई कि अगर उसने यह बात किसी से कही तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा|  

       इस घटना ने उसे झकझोर कर रख दिया था| नौकरी को बचाने के लिए उसने उस घटना के बारे में किसी से कुछ नहीं कहा पर हँसती-मुस्कुराती सोनल एक मुरझाए फूल की तरह रह गई| घर में दो जवान बहनों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी| अगर नौकरी चली गई तो उनका क्या होगा? यही सोचकर रह गई| दिन बीते, महीने बीते धीरे-धीरे वह इस सदमे से बाहर आने की कोशिश कर ही रही थी कि फिर एक बार उस सुपरवाईजर ही हवस का शिकार होना पड़ा| उसने  उस लाचार लड़की का कई बार बलात्कार किया| वह बेचारी इसी डर से कि अगर कहीं दूसरी जगह नौकरी नहीं मिली तो उसकी बहनों का क्या होगा? उस कड़वे घूँट को पीकर रह जाती| लेकिन हद तो तब हो गई जब एक दिन उस सुपरवाईजर ने उसे अपने कुछ दोस्तों के साथ भी.......यह सुनकर वह चौक गई| उस दिन वह कुछ बहाना बनाकर ऑफिस बाहर निकलने में कामयाब हुई| दूसरे दिन से वह उस ऑफिस में नहीं गई| इसी बीच उसे एक और दुखद घटना का सामना करना पड़ा| उसकी माँ जो सरकारी मानसिक रोगी अस्पताल में भर्ती थी| दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी| अस्पताल वालों ने माँ के मृत शरीर को उसके घर भेज दिया| उसके पास जो कुछ पैसे थे माँ के अंतिम क्रियाकर्म में खर्च हो गए| इधर ऑफिस से सुपरवाईजर ने उसे कई बार बुलाया लेकिन वह नहीं गई| उस पर हुए इस अत्याचार को किससे कहे? कौन उस गरीब बेसहारा को इन्साफ दिलाएगा? कोई उसकी कही बातों का विश्वास नहीं करेगा| यही सोचकर वह अपने दुःख को अंदर ही दबाकर रह गई| उसने और कई कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया| लेकिन उसके मन में एक डर बैठ गया था कि अगर इस कम्पनी में भी......? उसने कम्पनी में नौकरी करने का विचार ही छोड़ दिया|

     अगर वह काम नहीं करेगी तो खाने को कहाँ से मिलेगा| घर का खर्चा बहनों की पढ़ाई का खर्चा सब कहाँ से होगा? उसने ऑफिस में नौकरी करने की जगह आस-पड़ोस के घरों में बर्तन माँजना, कपड़े धोने का काम शुरू कर दिया| जिन घरों में वह काम करती थी उन्हीं में से एक घर था कान्ता प्रसाद का| कान्ता प्रसाद बड़े ही नेक इन्सान थे| उनका एक बेटा था संतोष जितने पिता नेक इन्सान थे उतना ही बेटा नालायक था| कान्ता प्रसाद हमेशा उसकी शिकायतों से परेशान रहते थे| इकलौता बेटा था घर में किसी चीज की कमी नहीं थी| शायद बेटे को अपने माता-पिता की कमजोरी पता थी| इसी लिए  उसके जी में जो आता करता

       एक दिन कान्ता प्रसाद अपनी पत्नी के साथ कुछ दिनों के लिए बाहर गए हुए थे| घर में संतोष अकेला था|  घर में कान्ता प्रसाद और उनकी पत्नी को न पाकर सोनल सहम गई| उसने संतोष से उसके माता-पिता के बारे में पूछा| उसने बताया कि मम्मी पापा कुछ काम से दो दिनों के लिए बाहर गए हैं| यह सुनकर वह और डर गई| उस दिन वह जल्दी-जल्दी काम करके चली गई| इसी तरह दूसरे दिन वह काम करके जाने लगी तभी  संतोष में उसे रात का खाना बनाकर रखने के लिए कहा| उसने संतोष  खाने के लिए रोटी और सब्जी बना दी| घर का सारा काम खत्म करके वह जाने लगी तभी संतोष उसके पास आया और उसे पकड़कर जबर्दस्ती अपने कमरे में ले गया| वहां उसने  सोनल के साथ कई घंटों तक रेप किया, उसे मारा-पीटा यहाँ तक की उसकी अश्लील फिल्म भी बना ली| उसने सोनल को धमकी दी कि अगर उसने यह बात किसी को बताई तो वह उसकी इस फिल्म को अपने सभी दोस्तों के सेल फोन में भेज देगा  और हो सकता है उसके दोस्त अपने और दोस्तों को उसकी फिल्म भेज दें इससे वही बदनाम होगी| अगर उसने ज्यादा होशियारी दिखाई तो हो सकता है जो उसके साथ हुआ उसकी बहनों के साथ भी वैसा ही कुछ हो..........| लड़खड़ाते हुए जख्मी हालत में वह घर पहुंची| घर पहुँचकर उसने अपनी छोटी बहनों को अपनी इस स्थिति का तनिक भी आभास नहीं होने दिया| 

       कुछ दिनों तक वह खामोश रही| एक बार तो उसके मन में आया कि वह पुलिस स्टेशन जाकर उसकी शिकायत दर्ज करवा दे| संतोष को उसके किये का दण्ड मिलना चाहिए यही सोचकर एक दिन वह घर से निकली कुछ दूर पहुँचने पर उसे संतोष की वह धमकी जिसमें उसने कहा था कि अगर उसने इस बारे में किसी को कुछ भी बताया तो वह उसकी बहनों के साथ भी.....? उसके कदम अपने आप रुक गए| वह हताश सी चुपचाप घर लौट आई| बहनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वह खामोश रह गई| उसे नहीं पता था कि उसकी खामोशी संतोष की ताकत बन जाएगी| जब कभी भी वह मौका पाता सोनल को डरा धमका कर उसका बलात्कार करता| सोनल ना चाहकर भी...........| संतोष की इन हरकतों ने उस असहाय लड़की की अंतरात्मा तक को झकझोर कर रख दिया| संतोष ने खुद तो उसका बलात्कार किया| जब उसका दिल भर गया तब उसने सोनल पर दबाव डाला कि वह सब कुछ जो उसने उसके साथ किया है वह उसके दोस्तों के साथ भी करे| उसके इन्कार करने पर उसे ब्लेकमेल करता| अगर वह उसके कहे अनुसार नहीं करेगी तो वह उसे मोहल्ले में बदनाम कर देगा| उसकी बनाई अश्लील फिल्म को.....| ना चाहते हुए भी वह उन लोगों की दरिंदगी का शिकार होती| उसके दोस्तों ने भी उसका जी भरकर बलात्कार किया| 

     इस तरह  सोनल ने मात्र 18 साल की उम्र में सब कुछ खो दिया था, लेकिन उस मुश्किल घड़ी में भी उसने अपना धैर्य नहीं छोड़ा| दिन-प्रतिदिन बात आगे बढ़ती जा रही थी| एक शाम संतोष ने सोनल को अपने दोस्त की पार्टी में काम करने के लिए बुलाया| यहाँ भी संतोष ने उसे अपने एक दोस्त के सामने एक लजीज पकवान की तरह परोस दिया| उसके इन्कार करने पर उसके दोस्त ने उसे पैसों का लालच दिया| उसने बताया कि यहाँ उसे वैसे भी यह सब करना पड़ रहा है चाहे उसकी मर्जी हो या ना हो| अगर वह उसका कहा मानती है तो उसे इस काम के लिए पैसे खूब मिलेंगे| उसे लोगों के घरों में बर्तन मांजने की जरुरत नहीं पड़ेगी|  उसकी बहनों की पढ़ाई-लिखाई भी हो पाएगी| अपनी बहनों के सुनहरे भविष्य के लिए उसने उसकी बात माँ ली|     इसी तरह धीरे-धीरे वह इस कीचड़ में धँसती चली गई| संतोष की हवस ने उसे वैश्यावृत्ति के दलदल में ऐसा ढकेला कि उसके लिए समाज के सभी दरवाजे बंद हो चुके थे

     दिन रात उसे अपनी बहनों की चिंता सताती रहरहकर संतोष की वह धमकी याद आती जो उसने वर्षों पहले उसे दी थी| समय के साथ-साथ उसकी बहने भी बड़ी हो रही थीं| उसकी बहने अब कॉलेज जाने लायक हो चुकी थीं| उसने दोनों बहनों का दाखिला एक कॉलेज में करवा दिया था| दोनों बहने पढ़ने में होशियार थीं| उसने बहनों को कभी भी माँ-बाप की कमी महसूस नहीं होने दी| उनकी ज़रूरतों को पूरा करने की हर संभव कोशिश करती| उन्हें वह सब खुशी देने की कोशिश करती जो उसे नहीं मिल सकीं थीं|
    
     एक दिन दोनों बहने अपने दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने के लिए गई थी| लौटते हुए उन्हें देर रात हो गई थी| उन्होंने रास्ते में कुछ ऐसा देखा जिसे देखकर उन दोनों बहनों के होश उड़ गए| असल में उन्होंने सोनल को उस जगह देखा जहाँ शरीफ घर की स्त्रियों को खड़ा रहना शोभा नहीं देता| देर रात को सोनल के आते ही दोनों बहनों ने सवालों की बौछार शुरू कर दी| सोनल ने भी उन दोनों से कुछ न छिपाते हुए जो कुछ था सब सच कह दिया| सोनल की बातें सुनकर दोनों बहनों के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई उनकी बहन एक...... सोचकर ही उन्हें घिन आने लगी| जिस बहन को वे दोनों अपना आदर्श मानती थीं| एक पल में उसे ज़मीन पर गिरा दिया| यह सब जानकर दोनों बहनों ने सोनल से अलग रहने का फैसला किया| सोनल ने उन्हें बहुत समझाया उनके आगे रोई गिडगिडाई उन्हें जाने से रोकने के लिए उसने हर संभव कोशिश की लेकिन उन दोनों बहनों ने उसकी एक न सुनी| बहनों के अलग होने की बात एवं  बहनों द्वारा कही कटु बातों ने उसे झकझोर कर रख दिया था| इस सदमे को वह बरदाश्त न कर सकी| इसी सदमे के कारण उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया|  इसके बाद उसे सरकारी मानसिक रोगी अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया| कुछ महीनों बाद वह कुछ ठीक भी हुई लेकिन अपने जीवन से आस छोड़ चुकी सोनल ने अंत में अपने जीवन को समाप्त करने का फैसला कर लिया और..........अंत समय में उसके हाथों में एक खत था जिसे उसने टूटी-फूटी भाषा में  अपनी बहनों के नाम लिखा था| उसमें लिखा था
मेरी
प्यारी बहनों
  मैं जानती हूँ कि तुम दोनों यह जाकर मुझसे नफरत करने लगी हो कि मैं एक वेश्या हूँ| मेरे जाने के बाद तुम लोगों को यह जानना बहुत जरूरी है  कि तुम्हारी बहन इस धंधे में आई कैसे| मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम लोगों को शर्मिंदा होना पड़े| कोई भी औरत इस धंधे में खुशी से नहीं आती| जब तुम दोनों छोटी थीं तभी पिताजी चल बसे| पिता के मर जाने के गम में माँ भी पागल हो गई|  तुम दोनों की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आई| मुझसे जितना बन  सका अपनी जिम्मेदारी को निभाने की पूरी कोशिश की पर शायद .....तुम लोगों को मुझ से सदा यही शिकायत थी कि मैंने अच्छी खासी कम्पनी की नौकरी छोड़कर लोगों के घरों में क्यों काम करना शुरू कर दिया| यह वही कम्पनी है जहाँ मेरे साथ पहली बार बलात्कार हुआ| इसीलिए मैंने वह नौकरी छोड़ी और लोगों के घरों में काम किया|

   मैंने यह सोचकर घरों में काम करना शुरू किया था कि यहाँ ऐसा कुछ नहीं होगा| लेकिन यहाँ भी मेरे साथ वही हुआ जो कम्पनी में हुआ था| मुझे मारा गया धमकाया गया कि अगर मैंने यह बात किसी से कही तो वे लोग तुम लोगों के साथ भी यह सब कर देंगे| तुम लोगों की खातिर मैं चुप चाप सब कुछ सहती रही|  मेरे भी कुछ सपने थे कि मेरा भी अपना घर-परिवार हो| लेकिन मुझे सिर्फ और सिर्फ धोखा मिला| बार-बार मेरी इज्जत के साथ खेला गया| मैं उस कड़वे घूँट को पीकर भी जीती रही कि कहीं उसकी कड़वाहट तुम लोगों की जिन्दगी पर न आ जाए|  
अब शायद मेरा काम इस दुनिया में पूरा हो चुका है| तुम दोनों से ही मेरी दुनिया थी| जब तुम दोनों ही मेरे साथ नहीं रहोगी तो मैं इस दुनिया में जी कर क्या करूँगी| भगवान  तुम दोनों को सदा सुखी रखे| सदा खुश रहना ..................
तुम्हारी अभागी बहन
सोनल  
चिट्ठी पढ़कर दोनों बहनों की नज़रें शर्म से झुक गईं| वे दोनों अपने किए पर बहुत शर्मिंदा थीं| पर अब बहुत देर हो चुकी थी| पंछी पिंजरा छोड़कर जा चुका था|