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Thursday, September 27, 2012

अस्तित्व


रोज़ की तरह आदित्य ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया| तैयार होकर घर के बाहर अपनी कैब का इंतज़ार करने लगा थोड़ी देर के बाद उसकी कैब आई और वह ऑफिस के लिए रवाना हो गया| उनके ऑफिस के सप्ताह का आखिरी दिन था अर्थात शुक्रवार था (वीकेंड था) इसलिए आज उसका मन ज्यादा काम करने का नहीं था| उसने इस सप्ताह का साप्ताहिक कार्यक्रम भी (वीकेंड प्लान) तैयार नहीं किया था| वह सोच रहा था कि ऑफिस जा कर अपने दोस्तों के साथ कुछ प्लान बनाएगा| ऑफिस पहुँचकर उसने सबसे हाय, हेल्लो की और अपने केबिन में चला गया| केबिन में जाकर अपना कंप्यूटर चालू किया| इधर अन्य सहयोगियों का एक दूसरे के साथ हँसी-मजाक अभी चालू ही था| कुछ देर बाद  उसने अपनी टीम के बाकी सदस्यों (मेम्बरों) को अपने कैबिन में बुलाया और आनेवाले वीकेंड प्लान के बारे में पूछा| कुछ साथी जो पुणे के आस-पास के थे इस वीकेंड में  घर जा रहे थे| बचे अन्य साथियों  का कोई विशेष प्लान नहीं था| जो लोग वीकेंड पर कहीं नहीं जा रहे थे उनके साथ आदित्य ने  वीकेंड प्लान्स के आईडिया सजेस्ट करने के लिए कहा| आदित्य की एक सहकर्मी राधिका ने हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म बर्फी देखने का सुझाव दिया, इसी प्रकार शुभांगी का सुझाव था कि इस बरसात के मौसम में कही पिकनिक पर जाया जाए| इन्हीं सुझावों के आदान-प्रदान के बीच आदित्य ने अपने कम्प्यूटर में अपना मेल बॉक्स खोला| वह मेल की सूची देख ही रहा था कि एक मेल को देखकर वह रुका| वह मेल उसकी कंपनी के सोशल सर्विस टीम से आया था| उसने वह मेल पढ़ा उसमें  एक स्कूल के आगामी कार्यक्रम (एक्टिविटी) के बारे में लिखा था| मेल में सूचित की गई एक्टिविटी वे लोग आगामी  शनिवार को आयोजित (ओर्गानायिस) करने जा रहे हैं| यह एक्टिविटी बारामती गाँव में आयोजित होनी है| बारामती जो कि पुणे से लगभग एक घंटे की  दूरी पर है| आदित्य ने उस मेल के बारे में अपने अन्य साथियों को भी बताया| पहले तो उसके साथियों ने दूरी के कारण वहाँ जाने से मना कर दिया लेकिन उसके समझाने के बाद सब लोग वहाँ जाने के लिए तैयार हो गए|

अपने साथियों की हामी से वह बहुत खुश था| अगले दिन सभी लोग सुबह आठ बजे ऑफिस पहुँच गए|  सभी लोगों को ऑफिस में इकट्ठा होने के लिए इस लिए कहा गया था क्योंकि बारामती जाने के लिए कैब ऑफिस से ही जानेवाली थी| सभी लोग समय पर पहुँच गए थे थोड़ी देर बाद गाड़ी बारामती के लिए रवाना हुई| पुणे शहर से बाहर निकलते ही रास्ते में बरसात शुरू हो गई| इस बरसात के मौसम में पहाड़ी इलाका बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहा था| तभी राधिका ने अन्ताक्षरी खेलने का सुझाव दिया| उसका सुझाव सभी लोगों को पसंद आया| रास्ते में सभी लोग अन्ताक्षरी खेलते हुए करीब दो घण्टे के बाद बारामती जा पहुँचे| उन लोगों ने सोचा था कि उस स्कूल में जा कर सभी लोग बच्चो के साथ मौज मस्ती करेंगे| इसी मौज मस्ती में वे लोग भी अपने बीते दिनों को याद कर लेंगे| जैसे ही वे लोग स्कूल में पहुँचकर गाड़ी से उतरे| उन्हें वहाँ देखकर बच्चों के एक झुण्ड ने घेर लिया| बच्चे झुण्ड में जरूर आए थे पर सभी के सभी एक दम शांत खड़े थे| तभी आदित्य ने अपनी टीम के साथियों को छेड़ते हुए कहा – ‘सीखो इन बच्चों से  कैसे डिसिप्लिन में रहते हैं|’

आदित्य और उसके साथियों ने वहाँ पर खड़े सभी बच्चों से हेल्लो कहा पर बच्चों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पाकर उन्हें लगा शायद बच्चे उन लोगों से शरमा रहे हैं| उन लोगों ने उनसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो बच्चों ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया पर वे बोले कुछ नहीं| वे लोग उन बच्चों से बात करने की कोशिश कर ही रहे थे कि तभी उस संस्था की संचालिका पल्लवी वहाँ पर आ गई| उन्होंने आदित्य और उसकी टीम के सदस्यों का स्वागत सत्कार किया| पल्लवी से बातें करने के बाद उन्हें पता चला कि वे बच्चे जिनसे वे लोग बातें करने की कोशिश कर रहे थे असल में गूँगे और बहरे हैं| उन बच्चों के गूँगे – बहरे होने की खबर सुनकर वे लोग दंग रह गए| उन लोगों के मन में बच्चों के प्रति दया की भावना जागृत हो गई| यह सब देखकर पल्लवी समझ गई| उन्होंने बताया कि इन बच्चों को दया की नहीं, आप लोगों के प्यार और अपनेपन की जरूरत है| उन्होंने बताया कि वे और उनके कुछ साथी आस-पास के गाँवों में सर्वे करने जाते रहते हैं| आज जो वे लोग संस्था में इतने बच्चे देख रहे हैं यह सभी उनकी अपनी मेहनत और लगन का ही परिणाम कि वे इस प्रकार के बच्चों को एक छत के नीचे ला सकी हैं| 
हमारे समाज में इस प्रकार के बच्चों को परिवार के लोग बोझ समझकर घर के किसी एक कोने में छोड़ देते हैं| उन्हें हीन भावना से देखते हैं| ऐसे बच्चों के बारे में परिवार के लोग यही सोचते हैं कि ये लोग बड़े होकर भी भला क्या कर पायेंगे? ये सदैव उनपर बोझ बनकर ही जियेंगे| इसी सोच के कारण उनके माता-पिता उन्हें पढ़ने लिखने का कोई मौक़ा भी नहीं देते| कुछ देर स्कूल के ऑफिस में समय बिताने के बाद पल्लवी आदित्य और उसकी टीम के सदस्यों को स्कूल दिखाने के लिए ले गई| उस स्कूल में इस प्रकार के करीब तीस–चालीस बच्चे होंगे| रास्ते में जाते समय आदित्य ने कहा –
आदित्य -‘कितने मासूम हैं ये बच्चे देखकर लगता ही नहीं कि ये लोग बोल-सुन नहीं सकते’| आदित्य की इस बात के जवाब में पल्लवी ने कहा-
पल्लवी –‘हाँ ...पर ईश्वर .......कहकर वह रुक गई|’
उन्होंने एक कमरे की तरफ चलने का इशारा किया| उनके इशारे के आधार पर आदित्य और उनकी टीम  उनके साथ उस कमरे में जा पहुँची| उन्होंने देखा कि स्कूल के सभी बच्चे वहाँ पर बैठे आपस में अपने विचारों का आदान-प्रदान करके हँस-खेल रहे थे| जैसे ही उन्होंने आदित्य और उसकी टीम के लोगों को देखा वैसे ही वे लोग अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गए| बच्चों की इस मासूमियत ने आदित्य और उसकी टीम के सभी लोगों का मन मोह लिया| उन्होंने बच्चों को एक-एक करके चॉकलेट देना शुरू कर दिया| बच्चे चॉकलेट पाकर बहुत खुश थे|

बच्चों को चॉकलेट खाता देखकर उन्हें भी बहुत अच्छा लग रहा था| आदित्य बच्चों के बीच बैठा उनके साथ खेल रहा था| खेलते-खेलते उसकी नजर कमरे के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठे पंद्रह-सोलह साल के लड़के पर पड़ी| उसने सोचा कि शायद वह इस स्कूल में काम करता होगा| उस लड़के को एकांत में बैठा देखकर वह उस बच्चे के पास गया| उसने उस बच्चे से बात करने और उसे चॉकलेट देने की कोशिश की लेकिन वह लड़का वहाँ से गुस्से में उठकर चला गया| लड़के के इस व्यवहार से आदित्य को बहुत बुरा लगा| वह वहाँ से उठकर फिर से उसी हॉल में जा पहुँचा जहाँ सभी लोग बैठे थे| वहाँ पर कुछ देर बच्चों के साथ समय बिताने के बाद वे लोग पल्लवी के साथ स्कूल देखने के लिए निकल पड़े| जब से आदित्य उस लड़के से मिला था| उस लड़के के इस प्रकार के व्यवहार से  अभी तक दुःखी था| वह दृश्य बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था| पल्लवी उस स्कूल की गतिविधियों की जानकारी देती हुई आगे चली जा रही थी| उनके पीछे-पीछे आदित्य और उसकी टीम के सदस्य चले जा रहे थे| चलते-चलते आदित्य की नजर फिर से उस लड़के पर पड़ी| जिसे उसने कुछ देर पहले उस पेड़ के नीचे देखा था| आदित्य उसके बारे में पूछने ही वाला था कि पल्लवी ने स्वयं ही उसके बारे में बताना शुरू कर दिया –
पल्लवी – पेड़ के नीचे बैठे उस लड़के को देख रहे हो| उसका नाम उदय है|
 
आदित्य – वह लड़का......बड़ा बत्तमीज है मैं उसे चॉकलेट देने गया था लेकिन न तो उसने  चॉकलेट ली और न ही मेरी बातों का कोई जवाब दिया ...........|
पल्लवी – नहीं ..नहीं वह तो बड़ा ही भोला-भाला मासूम लड़का है .......जैसे उसकी उम्र         बढ़ी है उस तरह से उसे शिक्षा भी नहीं मिल सकी| वह हमारे इसी स्कूल में कक्षा पाँच में पढता है| 
दस-बाहर साल के लड़के का कक्षा पाँच में पढ़ने की बात सुनकर आदित्य और उसके अन्य साथी चौक गए| उदय के विषय में पल्लवी ने आगे बताया कि -

पल्लवी – आप लोगों को लग रहा होगा कि वह किसी गरीब परिवार या किसी माध्यम वर्गीय परिवार से होगा उसके माँ –बाप उसकी परवरिश नहीं कर सकते होंगे इसी लिए उसे इस स्कूल में भर्ती करवा दिया है| ऐसा नहीं है वह एक अच्छे खासे खाते-पीते परिवार से है| उसके तीन भाई और दो बहनें है| यह सबसे छोटा है| इसके सभी भाई –बहन सामान्य है| इसके गूँगे-बहरे होने के कारण इसके माँ-बाप ने इसे स्कूल ही नहीं भेजा और ना ही कभी इसकी ओर कोई विशेष ध्यान दिया| उन्हें तो यही लगता है किस इसे पढ़ा-लिखाकर क्या करेंगे? कौन सा इसे नौकरी मिलेगी ....? उनके इसी एक विचार ने उदय की किस्मत का फैसला कर दिया|

पल्लवी उदय  की कहानी सुना रही थी तो लग रहा था जैसे इसी फिल्म की कोई स्क्रिप्ट पढ़ रही हो पर यह फिल्म नहीं जीवन की यथार्थ स्थिति थी| जिसे हम और आप कभी ना कभी कहीं ना कहीं होते हुए देखते रहते हैं| हमने भी न जाने कितने ही ऐसे बच्चों को देखा होगा पर कभी भी हमने उन बच्चों के साथ उस प्रकार का व्यवहार नहीं किया होगा जैसा कि सामान्य बच्चों के साथ  .......खैर छोडो इन सब बातों को .....हाँ तो हम उदय के बारे में बात कर रहे थे| उदय के गूँगे-बहरे होने के कारण उसके परिवार में उसके साथ दोहरा व्यवहार होता रहता था| हमेशा उसके भाई-बहनों को उससे ज्यादा अहमियत दी जाती थी| हर कोई उसे हीन भावना से देखता| मानों यह उसी की गलती है कि वह इस संसार में गूंगा–बहरा पैदा हुआ है| परिवार के लोगों ने कभी उसे समझने की कोशिश ही नहीं की, वह क्या चाहता है कभी यह जानने की कोशिश नहीं की| परिवार के इन्हीं  कटु अनुभवों के कारण वह इस प्रकार का चिड़चिड़ा सा हो गया है|

एक दिन जब पल्लवी उस गाँव में अपने कुछ साथियों के साथ सर्वे करने के लिए गई तो उन्हें उदय के बारे में जानकारी मिली| उसके माता-पिता पल्लवी के पीछे ही पड़ गए कि वह उदय को अपने साथ लेकर चली जाएँ| लेकिन पल्लवी ने पहले उदय की मर्जी जाननी चाही| उसने उदय से इशारों में बात करना शुरू किया| कुछ देर बात करने के बाद उस मासूम भोले बच्चे की आँखें जवाब देते-देते रो पड़ीं| जैसे उसने इस संसार में आकार कोई भारी गुनाह कर दिया हो| वह इधर-उधर देख लेता कि कहीं परिवार का कोई सदस्य उसे किसी अन्य व्यक्ति के सामने रोते हुए ना देख ले इसी आभास से कि कोई देख न ले उसने अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछ लिया| पल्लवी ने उदय के साथ कुल दस मिनिट बात की होगी इन्हीं पाँच मिनिटों में न जाने उदय के मन में क्या जादू पैदा कर दिया कि वह पल्लवी के साथ बात करने लगा | शायद आज किसी ने उसके साथ इतने प्रेम से बातें कीं थीं| दूसरा यह कि पल्लवी को मूक-बधिरों की भाषा आती है| शायद इसी लिए उदय को उसपर विश्वास हो गया हो सकता है कि इतने वर्षों में जो घर-परिवार के लोग न कर सके वह पल्लवी के बातों ने कर दिया| वह उसे बहुत कुछ बताना चाहता था| शायद आज तक किसी ने उसकी चाह जानी ही नहीं और ना ही जानने की कोशिश की कि वह क्या चाहता है ....?पल्लवी उसकी मर्जी जान चुकी थी कि वह उस परिवार के साथ नहीं रहना चाहता| एक सप्ताह के बाद पल्लवी ने उदय को अपने स्कूल में ले आई|

यहाँ आकर वह खुश तो बहुत है पर यहाँ भी उसका कोई साथी नहीं है| जिसके साथ वह खेल सके अपने मन की बात कह सके इसी लिए वह सब बच्चों से अलग रहता है| ऐसा नहीं है कि वह छोटे बच्चों से प्रेम नहीं करता  उसे भी छोटे बच्चों के साथ खेलना-कूदना अच्छा लगता है पर कहीं लोग  उसकी उम्र के कारण उसका मज़ाक न उडाएं इसी लिए वह अलग-अलग रहता है| उदय के विषय में इतना जानकार आदित्य के मन में आत्मग्लानि का भाव.......एक पछताव सा महसूस हुआ| आदित्य ने एक बार उदय से मिलकर माफी मांगनी चाही पर वह मौक़ा न मिल सका .....| 

पल्लवी ने आगे बताया कि उदय को नाचने का बड़ा शौक है| वह बोल सुन तो कुछ सकता नहीं पर हाँ जो कुछ टी.वी. पर देखता है उसे देखकर अकेले में अभ्यास करता है| एक दिन उदय ने पल्लवी को बताया कि वह बड़ा होकर एक डांसर बनना चाहता है| इस प्रकार के बच्चों को कुछ भी सिखाना बहुत ही धैर्य का काम है और फिर इस प्रकार के बच्चों को सिखाने के लिए लोग बहुत ज्यादा फीस माँगते हैं| इतनी फीस हमारी संस्था वहन नहीं कर सकती|

सूरज ढलान की तरफ था| आदित्य और उसके साथी अब लौटने के लिए तैयार थे| जाने से पहले वे लोग सभी बच्चों से फिर से एक बार मिले| उनके मुस्कुराते चेहरे उन्हें अपनी ओर खीच रहे थे| जीवन में इतना सब कुछ ना होने पर भी ये बच्चे छोटी-छोटी खुशी पाकर कितने खुश हो जाते हैं| बच्चों से मिलने के बाद सभी लोगों ने पल्लवी और बच्चों से विदा ली और घर की ओर लौट चले| सुबह और शाम में बहुत अंतर आ चुका था| उनकी आँखों के सामने उन मूक बधीर बच्चों की छवी थी| जो जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन जीने की एक लौ खोज रहे हैं| सुबह तो सभी लोग हँसी-मज़ाक करते हुए, गाना गाते आये थे| किन्तु लौटे समय उनके मन में तरह-तरह के अनसुलझे प्रश्न थे| न जाने उदय और उदय जैसे लोगों को समाज में अपना अस्तित्व स्थापित करने के लिए और कितना कठिन परिश्रम करना होगा| ऐसा नहीं है कि इन बच्चों में हुनर की कमी है या ये कर नहीं सकते| इन बच्चों में हुनर और हौसलों की कमी नहीं बस इन्हें चाहिए समाज में एक सम्मानजनक स्थान और अपने हुनर को समाज के सामने रखने का समान अवसर|