मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्त्व है। शिक्षा ही तो है जो मानव को यथार्थ रुप में मानव बनाती है। शिक्षा के बिना मनुष्य जीवन पशु तुल्य ही होता । मानव और पशु में यही अंतर है कि मानव शिक्षा के द्वारा ही अपने को उन्नति के शिखर पर ला सका है। मानव शिक्षा ग्रहण करके शिक्षा प्रचार-प्रसार करता है किन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते । मनुष्य जब से जन्म लेता है और जब तक जीता है कुछ न कुछ सीखता है और सिखाता है ।
ज्ञान वो दीपक है जो मनुष्य को अंधकार रुपी संकट में सहारा देता है। मनुष्य का स्वभाव है कि ज्यों -ज्यों उसकी आयु बढ़ती जाती है ,त्यों -त्यों वह अनुकरण के द्वारा अनेक बातें सीखता जाता है । जब शिशु इस संसार में आता है धीरे-धीरे चलना सीखता है ,बोलना सीखता है ,यद्यपि बच्चे को यह ज्ञान नहीं होता कि वह सीख रहा है फिर भी उस का सांसारिक ज्ञान बढ़ता चला जाता है। मनुष्य जीवन की सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था विद्यार्थी जीवन ही होता है । विद्यार्थी जीवन ही सारे जीवन की नीव मानी जाती है । एक चतुर कारीगर बहुत ही सावधान तथा प्रयत्नशील रहता है कि वह जिस मकान का निर्माण कर रहा है कहीं उस की नींव कमजोर न रह जाए । नीव दृड़ होने पर ही मकान की मजबूती नापी जा सकती है। जब नींव मजबूत होगी तब ही मकान धूप -छांव, आँधी पानी और भूकंप के वेग को सह सकता है । इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति
अपने जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाने के लिए सावधानी से यत्न करता है।
भलि प्रकार विद्या ग्रहण करना विद्यार्थी का प्रमुख कर्तव्य होना चाहिए। विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने शरीर बुद्धि ,मस्तिष्क मन और आत्मा के विकास के लिए पूरा -पूरा यत्न करे । अनुशासन प्रियता, नियमितता समय पर काम करना, उदारता ,दूसरों की सहयता करना , सच्ची मित्रता ,पुरुषार्थ, सत्यवादिता,नीतिज्ञता ,देश भक्ति ,विनोद-प्रियता आदि गुणों से विद्यार्थी का जीवन सोने के समान निखर उठता है। उसी प्रकार उसकी कड़ी मेहनत से उस का भविष्य उज्जवल हो जाता है। जिस प्रकार सोने की सत्यता को पहचानने के लिए उसे आग में जलाया जाता है ,तब जाकर सोना अपने सच्चें आकार को पाता है। उसी प्रकार एक सच्चे विद्यार्थी को अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम रूपी आग में जलना ही पड़ता है। किन्तु जिस प्रकार हम उन्नती की ओर बढ़ रहे हैं , हमारी शिक्षा में भी नित नए-नए परिवर्तन आते जा रहे हैं।
एक समय था कि विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु के आश्रम में जाना पड़ता था किन्तु आज की शिक्षा पद्धति में यह बात नहीं आज शिक्षा मात्र धन कमाने के केन्द्र बनते जा रहे हैं । आज जिस प्रकार शिक्षा को कठपुतली की तरह प्रयोग में लाया जा रहा है इसकी कल्पना शायद किसी ने न की होगी । यह बात सही है कि हमें शिक्षा में नए-नए परिवर्तन करते रहना चाहिए किन्तु हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि हमें आधुनिक शिक्षा के प्रयोग के साथ - साथ अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। यह सही है कि हमें ऐसी शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए जिससे हमें भविष्य में उद्योग आसानी से उपलब्ध हो सकें।
आज बड़े दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि विद्या एक व्यापर का बड़ा केन्द्र बन चुकी है। विद्यालय एक केन्द्र की इमारत की तरह हो गई है और अध्यापक एक व्यापारी के समान बनते जा रहे हैं । जिस प्रकार समाज दिन -प्रतिदिन उन्नति कर रहा है । आज एक बच्चे को विद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिए माँ-बाप को कितनी ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और यदि विद्यालय नामी है तब तो माँ-बाप को विद्यालय के दसो चक्कर काटने पड़ जाते हैं। आज बच्चे विद्यालय में पढ़ते तो हैं किन्तु उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती क्यों क्योंकि वहां के शिक्षक -शिक्षिकाएं उन्हें ट्यूशन की शिक्षा देते हैं अर्थात विद्यालय में फीस जमा करो फिर ट्यूशन की फीस अदा करो । आज इसी ट्यूशन की लत ने अधिकांश शिशकों -शिक्षिकाओं को व्यापरी बना कर रख दिया है । आज जब शिक्षक स्कूल या कॉलेज में किसी विषय की पूर्ण जानकारी विद्यार्थियों को न देकर कहता है कि आप ट्यूशन आ जाना वहीं पर सब परेशानी का हल कर देंगे । आज क्या होता जा रहा है हमारी सभ्यता को ? कहाँ थे हम और कहाँ आ गये?
लेकिन हमें सिक्के के एक ही पहलू को नहीं देखना चाहिए , सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है । यदि शिक्षक किसी विद्यार्थी को ट्यूशन पढ़ाता है तो क्या गलत करता है ? क्या समाज के किसी भी वर्ग ने शिक्षक की आर्थिक स्थिति की ओर ध्यान दिया है ? नहीं … शिक्षक का भी परिवार होता है उसके भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का अधिकार है। यदि उसे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलानी है तो पैसों की जरुरत पड़ेगी ही वे पैसे कहाँ से आएं ? शिक्षक अपने बच्चों को सम्मान के साथ शिक्षा दिला सके इसके लिए उसे ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है । यह बात भी सही है कि कुछ लोग इस सम्मानजनक पद की गरिमा को अपमानित कर रहे है किन्तु एक के किए की सजा सब को देना यह तो सही बात नहीं है। आज विद्यालयों के कर्तव्य और दायित्व के प्रति देशभर के अधिकांश लोगों की धारणाएं बदल रही हैं । इन बदलती धारणाओं का कारण है आज की शिक्षा पद्धति और अध्यापकों की कड़ी मेहनत जिसके कारण विद्यालय की यथार्थ तस्वीर समाज के सामने आ जाती है। आज की शिक्षा जहाँ एक तरफ छात्रों से कमरतोड़ मेहनत करवाती है वहीं उनमें नया जोश और उत्साह भी भरती है। आज बदलती शिक्षा ने किशोरों मे एक नया जोश भर दिया है आज उनमें कुछ कर दिखाने का जोश पनप रहा है । उनमें देश के प्रति कुछ करने की लगन पनप रही है । यह सब तभी तक चल सकता है जब शिक्षको को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य करने के अवसर प्राप्त होते रहेंगें और उन्हें
उनकी योग्यता के आधार पर ही वेतन मिलता रहेगा । जब शिक्षक को अपनी नौकरी के न खोने और वेतन की चिंता नहीं रहेगी तभी वह अपने विद्यार्थियों को निÏश्चत होकर शिक्षा प्रदान कर सकेगा, तभी वह नवयुवको का सही मार्गदर्शन कर सकेगा। यदि समाज मे शिक्षक उन्नत रहेंगे तभी समाज उन्नत बन सकेगा और
समाज की उन्नती देश की उन्नती होगी ।
"गुब्बारे ले लो.........., खिलौने ले लो....... रंग बिरंगे खिलौने लेलो..........." प्रतिदिन की तरह बूढीअम्मासिरपर खिलौनोंकी टोकरी ले कर धीरे धीरे चली जा रही थी. उसकीआवाज़ सुन कर गली -मोहल्लेके बच्चे दौड़ कर अम्मा को चारोंतरफ से घेर लेते . अम्माभी उनबच्चोंको देखकर खुश हो जाती .गांव केबीचों -बीचएकपीपल काएक विशालवृक्षथा .पीपल के चारों तरफ चबूतरा बना हुआ था. बूढी अम्माउसी चबूतरे पर जाकर अपनीटोकरीरखकर बैठ जाती . गाँव केबच्चे उन्हें चारोंतरफ से घेरेलेते औरअपनीतोतली -तोतलीआवाजों में अपने -अपने खिलौनों की फरमाइशें शुरू कर देते .. अम्मा भीउनकी तोतलीआवाज़ेसुनकरउन्हें उन्हीं के अंदाज़ में समझतीऔर कहती अमुक खिलौने का दाम ये है इतने पैसे लाओतब मैं खिलौना दूंगी .गाँव के सभीलोग उन्हें अम्मा के नाम से जानतेथे.कोईभी उनकाअसली नाम पता नहीं जानता था हाँ सबको यहपता था कि वे पड़ोस केगाँव में हीरहती हैं ., वेबूढी अम्मा के नाम से ही आसपास के गाँव मेंजानी जाती.सब उन्हें बूढी अम्मा ही कहकर बुलाते ... चाहे बालक हों , जवान हों , या फिरबूढ़े सब उन्हें अम्मा कहकर पुकारते थे .
अम्मा की टोकरी हमेशासुंदर -सुन्दर खिलौनो से भरी रहती थीशायदइसीलिएवे जिसगाँवमें भी जाती ,गाँव काहर बच्चा उनके पास आकर उन खिलौनों को देखता ....खिलौनों का दाम पूछता.अम्मा सेबातेंकरताफिर एक बार खिलौनों का दाम पूछता औरएक टक उन्हें निहारतारहता.....अम्मा कोभी गाँव के हर बच्चे के एक प्रकार काआत्मिक लगाव हो गया था .वे भी घंटोबच्चोंके साथ बैठकर बातेंकिया करतीं . दिनभर में जितने खिलौनेबिक जाते सोबिक जाते . दिनभर में जो कुछ कमातीं उसी से उनका गुजर बसर होता . जब भीअम्मा खिलौने बेचने जातीं घंटोबच्चों के साथ बातें किया करती उन्हेंतरह -तरह की कहानियां सुनाया करतीं.जब लगता कि समय ज्यादा हो गया तोवहाँ से उठतीखिलौनों की टोकरी अपनेसिरपर रख कर लकड़ी का सहारा लेते हुए आगे बढ़ जाती और फिर वही आवाज़ ..... "गुब्बारे ले लो, खिलौने ले लो..रंग बिरंगे खिलौने ले लो......
गाँव -गाँवखिलौने बेचकर अम्माकी जीविकाचल रहीथी .अम्मा एक छोटी सी झोपड़ी में अकेलीरहती थी .अम्मा को इस गाँवमें आये हुए वर्षों बीतगए . वे कहाँ से आई ..? क्योंआई..? कोई इस विषय में कुछ नहीं जानता थाऔर ना ही किसी ने उनकेअतीत के बारे में उनसे पूछा .... पर हाँजब कभी कुछ स्त्रियाँ अम्मा केसाथ बैठकर बातें करती तो कई बारस्त्रियोंने उनके अतीत के बारेमें जानना चाहा लेकिन जब भी कोई स्त्री उनके अतीत के बारे में पूछतीअम्माउस प्रश्न को सुनकर मौन हो जाती ...ऐसा कुछ वर्षोंतकचला फिर बाद में बस्ती वालों ने यह सब पूछना ही छोड़ दिया ....
वैसेतोअम्माअपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर थीं लेकिनउनकी चुस्ती पर फुर्ती के आगेजवान लोग भी हार मानते थे ..अम्मा अपने शरीर से भले ही बूढी थी लेकिन मनऔर विचारों से अभी भी जवानथीं . अम्माज़रुरतमंदों कीमदद को हमेशातैयाररहती थी . शायद इसीलिए आस पास के गाँव के लोग उनका आदर , सम्मान करतेथे . किसी के घर विवाह हो , बच्चे का नामकरण हो या फिर और किसी प्रकार काकोईभी कार्यक्रम हो गाँव के लोग अम्मा को अपनी खुशियों में शामिल करनाबिलकुल नहीं भूलते . अम्मा भीसबको अपने बच्चों के सामान हीप्रेमकरती थी . वे सभी कार्यक्रमों में बढ़- चढ़कर भाग लेती थी . उनकी चुस्ती -फुर्ती और सूझबूझ के आगे अच्छे -अच्छे नतमस्तक होते थे .सर्दी हो, बरसात हो या फिरगर्मीअम्मा कभी भी घर में नहीं बैठती ...हाँ बरसात और सर्दियों केदिनों में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. लेकिन वे कभी भीकिसे से किसी प्रकार की सहायता की उम्मीद नहीं करती थी और ना ही किसी केआगे अपना दुखड़ा रोतीजो जैसा चल रहा है वह उसी में अपने आपकोखुश रखनेकी कोशिश करती थी .. ....
गर्मियों के दिन थेसूरजकी तपती गर्मी से धरती का बुरा हाल था.ऐसी तपतीगर्मी में भी अम्मारोज़खिलौने बेचनेजाया करती . उनका मानना था कि यदि मैं कमाउंगी नहीं तो खाऊँगी क्या ...? हमेशा की तरह अम्माअपनेसिर पर खिलौनों की टोकरीलेकर जा रही थी , धूपतेज़ थीपैदल चलने के कारण उनकी सांसे फूल रही थी .... उन्हें बहुत तेज़प्यास भीलग रही थी.पानी पीने के लिए पास ही के हैण्ड पम्प के पासगयी.पानी पीने के बाद उन्होंने अपना चेहरा धोया और चेहरा पोछतेहुएहैंडपंपके पास बने चबूतरे पर जाकरबैठ गई ... कुछ समय वहाँ बैठने के बाद उन्हें किसीबच्चे के रोने कीआवाज़ सुनाई दी ... पहले तो उन्होंने सोचा कि शायद कोई मंदिर में आयाहोगा..या इधर ही किसी खेत में कोई किसानदम्पतिकाम कर रहे होंगे ,उनकाबच्चाहोगा ....... बच्चे के रोने की आवाज़ को अनसुना करकेएक फटा सा कपड़ाचबूतरे पर बिछा कर लेट गईं .... लेकिनबच्चे के रोने की आवाज कम होने केस्थान पर और बढ़ती ही जा रही थी . काफी समय तक बच्चे के रोने कीआवाज़ कोसुनने के बाद उनसे रहा नहीं गयावे चबूतरे से उठी और जिस तरफ से आवाज़सुनाई दे रही थीउस तरफगयी.वही पास ही में देवी माँका मंदिर था. बच्चे के रोने कीआवाज़उस तरफ से ही आ रही थी . अम्मा उसतरफ गई वहाँ जाकर देखा किमंदिर के पीछेबनी सीढ़ी पर एकनन्ही सी बच्ची बिलख -बिलख कर रो रही है . अम्मा ने इधर -उधर देखा उन्हें कोईनज़र नहीं आया वे बच्ची के पास गई और उसे चुप कराते हुए उसके पास बैठ गयी . कुछ समय इंतजार करने के बाद अम्मा ने उस बच्ची को उठा लियाजैसे हीउन्होंनेबच्ची को अपनी गोद में उठाया तो वो बच्ची एक दम शांत हो गयी . अम्मा को लगा शायदउस बच्ची केमाता पिता यही कहीं किसी खेत में काम कर रहे होंगे खेत मेंशायद ज्यादा काम होगा इसीलिये उस बच्ची को यहाँ मंदिर की छांवमें सुलागए होंगे ... थोड़ी बहुत देर मेंआ जायेंगे . यह सोचकरउन्होंनेबच्ची को सीढ़ीसे उठाकरपेड़ कीछांवमें ले जाकर बैठगई .... काफी देर से रोने के कारण बच्ची कोप्यासा लग रही थी, उसकेहोंठ प्यास के कारण सूख रहे थे .... अम्मा हैंडपंप सेअपने चुल्लू मेंथोड़ा पानी लेकर आईऔर बच्ची को पानीपिलाया. पानी पीकर बच्चीथोड़ीशांतहो गई ...... काफी देर तकअम्मा उस बच्ची के साथ खेलती रही. बच्ची भी उनके साथहंस -खेल रही थी, जैसे मानो वही उसकी माँ हो ...बच्ची के साथ खेलते -खेलतेलगातार वे इधर -उधर भी देखती जाती कि कहीं उसके के माता -पिता इसे ढूंढ़ तो नहीं रहे .... लेकिनजब समय अधिक हो गया और कोई दूर -दूर तकनज़र नहीं आ रहा तो अम्मा घबराने लगीबच्ची के माता -पिता का इंतजार करतेकरते सुबह से दोपहर हो गई. .. उन्होंने फिर भी सब्र से काम लिया , उन्हेंलगा शायद कुछ देर और इंतजार करना चाहिए.. वैसे भी इस तपती दोपहरी में वहइस नन्ही से जान को कहाँ लेकर जायेगी ... बच्चीकी उम्र एक- डेढ़ साल कीहोगी . जैसे -जैसे दिन ढल रहा था अम्मा की चिंता भी बढ़ती जा रही थी मंदिरके आस -पास उसे कोई भी नज़र नहीं आ रहा था .वह बच्ची को अपनी गोद मेंउठाये हुए उसी पेड़ के नीचे बैठ गई . अब तोबच्ची भी भूख के कारणफिर सेबिलख - बिलख कर रोने लगी . उसे रोता देखकर अम्मा की आँखें भर आईउनके पासबच्चे को खिलाने -पिलाने के लिए कुछ भी तो नहीं था . कभी वो बच्ची को गोदमें उठाकर चुप करातीं कभी गोद में झुलाकर लेकिन बच्ची भूखा होने के कारणशांत होने का नाम ही नहीं ले रही था , तभी उन्हें ख्याल आया कि उनकी टोकरीमें दो रोटी रखीं हैं , उन्होंने रोटियों में से आधी रोटी तोडी और पानीमेंभिगोकर मसला और बच्ची को खिलाया भोजन मिलने के बाद बच्ची शांत हो गया , ....... दोपहरी भी धीरे -धीरे ढलती जा रही थीलेकिन उस बच्ची को लेने कोईनहीं आया .धीरे -धीरे लोगों की चहल पहल बढ़ने लगी ....अम्मारास्तेपरआते - जाते सभीलोगों से उस बच्ची के बारे में पूछती .... , "एमाई, यह आपकीबच्ची तो नहीं , बाबूजी यह आपकी बच्ची हैं क्या ?" सभी लोगों ने उसे नकार दिया. काफी देर तक लोगो सेपूछने के बाद थक हर करवो मंदिर के पुजारी के पास गयीउनसे भी पूछा , " महाराज, आप ने इस बच्ची के माँ- बाप कोदेखा हैं क्या ....? क्या आपनेदेखा था कि यह बच्ची किसके साथ आईथी, इसेकौन छोड़ गया...? परमंदिर के पुजारीको भी इसके बारे में कुछभी नहीं पता था, उन्होंने भी किसी को मंदिर के पास नहीं देखा था ... पहलेतो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया आखिर अम्मा उस बच्ची के बारे मेंक्यों इतनी तहकीकात कर रही है ... फिर अम्मा ने उन्हें सुबह घटित घटना कासारा वृतांत कह सुनाया ....तब पुजारी की समझ में आया ....थोड़ी देर अम्मासोचमें पड़ गयीअब क्या करे...? उन्होंने पुजारीसे कहा, " महाराज! क्या आपइसबच्ची को अपने पास रख सकते हैं....? हो सकता हैं , इसके माँ - बाप इसेढूँढतेहुए यहाँ आ जाएतो आप उन्हें इस बच्ची को दे देना . बच्ची को अपने पासरखने की बात सुनकरपुजारी गुस्से से आग बबूला हो गया और अम्मा से कहनेलगा –
“मैंने क्या यहाँसब का ठेका ले रखाहैं.....? या मैंने कोई धर्मशाला खोल रखी है ....?. ले जाओ इसेयहाँ से इसके माँ बाप को ढूंढनेका काम मेरा नहीं . इसेपुलिसस्टेशन मेंदे दो, वे लोग इसके माँ-बाप को ढूंढ़लेंगे या फिर वहींछोड़ दोजहाँसे इसे उठाकर लायी हो . कोई नाकोई जो इसे जानताहोगा आकरले ही जायेगा.
पुजारी की कटुबातें सुनकरबूढी अम्मा सहम सी गयी,... उन्हें अपने कानोंपरविश्वास हीनहीं हो रहा था किमाता के मंदिर का पुजारी इतना कठोर ह्रदयीभी होसकता है . वहइन्सान जो दिन-रातईश्वर की सेवा , भक्ति करता है . वहऐसा कैसे कह सकताहैं.थोड़ी देर सहमी सी खड़ीरहने के बाद अम्मा नेसोचा शायद पुजारी जी ठीकहीकह रहे हैंमुझे इस बच्ची के विषय में पुलिसकोसूचना देदेनी चाहिए . वे लोग ही इसके माँ - बाप कोढूंढ निकालेगे .मैं बेचारी बुढ़िया कहाँ -कहाँ इसके माँ -बाप को खोजुंगी ...... यहसोचते हुए अम्मा नेअपनी खिलौनों कीटोकरी सिरपर रख ली औरउस बच्ची को गोद में उठा लियाजैसे ही अम्माआगे चलनेलगीवैसे हीवह नन्ही बच्ची उनसेलिपट गई . नन्ही बच्ची के अम्मा से लिपटने पर अम्मा को एक अजीब सा असीम सुकून मिला . अम्मा ने बच्ची के चहरे की तरफ देखाबच्चीमंद -मंदमुस्कुरा रही थी, बच्ची की मुस्कराहटदेखकरएक पल के लिए अम्मा केपाँव जैसे रुक से गए . उसे देखकर उनके दिल को एक अजीब सेआनंदका अहसासहोरहाथा.तभीउनके मनमेंविचारआयाकि अगर पुलिस इस बच्ची के माँ- बाप को नहींढूंढसकी तो ....वेलोगतो इसेकिसीअनाथ आश्रम में डाल देंगे. अगर आश्रम में भी .....इसके साथकुछ .....नहीं नहीं .... यह सोचकरअम्मा ने पुलिस के पास जाने का फैसलाबदलदिया औरउस नन्ही बच्ची कोअपने साथ लेकर अपनी बस्ती की और चल दी .. अम्मा बस्ती की ओर चलती जाती औरकुछ सोच कर मन ही मन हंसने लगती औरआगे बढ़ती जाती .मन ही मन अब उन्होंने उसबच्ची के पालन -पोषण करने काफैसला कर लिया .... यह सोचते हीमानो उनके कदमो को एकदैवियताकत मिलगयी हो.उस बच्ची को लेकर जब अपनी बस्ती में आई, बस्ती के सभी लोग अम्माके साथ एक शिशु को देखकर चौक गए ... बस्ती के लोगों को पता था कि अम्मा काकोई भी रिश्तेदार नहीं है जहाँ तक उनका सवाल है जब से वे इस बस्ती मेंरहरही है तब से ही वे अकेली रहती है फिर आज ये बच्चा ....? जिसने भी अम्माकी गोद में बच्चे को देखा उसी नहीं ही पूछ लिया .....अम्मा आग किसका बच्चाउठा लायी .... एक एक करसभी पूछने लगे कि यह बच्ची कौन हैं, किसी हैं....? अम्मा नेउन्हें सारा हाल कह सुनाया. और साथ ही साथ अपना निर्णय भी बता दियाकिवेइस बच्ची को अपने साथ रखना चाहती है और उसका पालन पोषण करना चाहती हैं ...अम्मा के इस फैसले से कुछ लोगों ने उन्हें समझाया कि अब उनकी उम्र बच्चोंके पालन पोषण की नहीं ..... फिर भी अम्मा ने कहा कि कुछ भी हो वे इस बच्चीका पालन पोषण करेंगी ... अम्मा के इस निर्णयपर कुछ लोग तो खुश हुए .कुछ लोगऐसे भी थे जिन्हें अम्मा का यह फैसला बिलकुल पसंद नहीं आया......फिर भीउन लोगोंनेअनमने मन से हामी भर दी .....
अबअम्मा के अकेले सूने पड़े जीवन में एक खुशी की किरण दिखने लगी . वह नन्हीबच्ची अम्मा के जीवन केअकेलेपन की साथी बन गई . अम्मा उसे अपनी नज़रों केसामने से एक पल के लिये भी दूर नहीं करती . जब वे खिलौने बेचने जाती तो उसेभी अपने साथ ले जाती...एक गोद में बच्ची और सिर पर खिलौनों का टोकराअम्मा धीरे - धीरेएक गाँव से दूसरे गाँवखिलौने बेचती . जब से नन्हीबच्ची उनके जीवन में आई है तब से वे गाँव में बच्चों के साथ व्यर्थ समयनहीं बिताती . ऐसा भी नहीं था कि वे बच्चों के साथपहले जैसी बात नहींसे ज्यादा समय अपनी बच्ची को देना चाहती थी .देवी माँ केमंदिर परमिलने के कारण उस बच्ची का नाम उन्होंने अम्बा रखा ... धीरे – धीरेसमय बीतता गया दो साल की अम्बा अब पाँच साल की हो गयी ..अब तो अम्बा बूढी अम्मा के जीवन का एक हिस्सा बन गई थी . अम्मा उससेबहुतप्यार करती थीजैसे मानो वह उनकी अपनी हीबेटी हो . जो कुछ भी अम्माखिलौने बेचकरकमाती वह सब अम्बा कि परवरिश परखर्चकर देती.अम्बा बड़ीहो रही थी.उधर अम्मा का स्वास्थ्य धीरे -धीरे बिगड़ता जा रहा था . एक तोवृद्धावस्था ऊपर से अम्बा की देख रेख मेंउन्होंने अपने बारे में कभीसोचा ही नहीं ..
अम्माअबअपनेजीवन के बिलकुल अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुकीथी . धीरे- धीरेअम्मा कास्वास्थ्यख़राब रहनेलगा , लेकिन अम्बा को पालने के लिए उन्होंने कभी अपने स्वास्थ्यकीओरकोईविशेष ध्यान नहीं दिया .जब कभी ज्यादा स्वास्थ्यख़राब होता तो वे घरेलू नुस्खो से ही काम चला लेती उन्हें लगता कि यदिडॉक्टरके पास जायेंगी तो पैसे खर्च हो और उनके पास इतने पैसे नहीं होतेकिघर का खर्च भी चला ले और डॉक्टरकी फीस भी दे दें ...फिर दवाइयों काखर्चाअलग से...इसीलिए अम्मा घरेलूनुस्खो से ही कामचलातीरहती थी .स्वास्थ्य के प्रतिइसी लापरवाही ने एक दिन उन्हें खाट पर लाकर रख दिया .इस बार वोजो बिस्तर पकड़करबैठीउसमें कोईघरेलूनुस्खो काम न आया .. अब तो दिन रात अम्मा खाट में ही पड़ीरहतीं . उन्हेंअपने स्वास्थ्य सेज्यादा अम्बा की परवरिश की चिंता सताए जा रही थी ... अक्सरवो ईश्वर से प्रार्थना करती रहती कि उन्हें अभी इस दुनिया से ना उठाये.अगरवो नहीं रही तो अम्बा का क्या होगा .....? कौन इस नन्ही सी जान की देखभालकरेगा ...? कही इसके साथ कुछ गलत हो गया तो ......? यही सोच -सोचकर उनकादिल बैठ जाता ... इस बार जो बीमार पड़ीतोबीमारी में ही पड़ीरही ..यहाँ तक कि उनका खाट से उतरना तक संभव न हो सका .अम्मा के बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए अम्बा अपने सिर पर खिलौनों कीटोकरी रखकर दिनभर खिलौने बेचने जाती . अम्बा को खिलौने बेचते हुए देखकरअम्मा मन ही मन में कुढा करती ... एक तो उसकी उम्र ही क्या थी मात्रसात - आठसाल.......अम्बा दिन भर में जो कुछ कमाकर लाती उससे घर का खर्च औरअम्मा के लिए कुछ दवाई लेकर आ जाती ... जब अम्माका स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़नेलगा ... जब इस बात की जानकारीबस्ती वालों को मिले तो कुछलोगोंने उनका कुछ दिनों तकइलाज करवाया .लेकिन ढलती उम्र में डॉक्टरों की दवाई भी बेकार साबित हुई ...लम्बीबीमारी से लड़ते -लड़ते एक दिन अम्बा को इस संसार में अकेला छोड़कर अम्मापरलोकसिधार गई.बस्ती के लोगों ने अम्मा का अंतिम संस्कार किया .. अम्मा तो इस संसार से चली गई पीछे छोड़ गई अम्बा को .. अबअम्बा इस संसारमें बिलकुल अकेली रह गयी . कई दिनों तक तो अम्बा ने अन्न जल की एक बूंद तकनहीं ली . अपनी झोपड़ी में अकेले बैठी रहती ..बस अम्मा को याद कर उसकीआँखों की आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे . जब बस्ती वालों ने उसे समझाया .... काफी समझाने के बाद उसने कई दिनों के बाद भोजन ग्रहण किया ....
इधरबस्ती के लोगो को अम्बाकीचिंता हो रही थी कि अबउस मासूम काक्या होगा ? अम्बा के विषय मेंचिंता तोसब को हो रही थी पर कोई भी उस मासूम को अपनानेऔर अपने साथ घर में रखनेको तैयार नहीं था . तभी वहां एक अधेड़ उम्र का आदमी जिसका नाम " सुरेश"था, आगे आयाऔर बोलामैं इस बच्ची को संभालूँगा. मैं करूँगा इस का पालन - पोषण करूँगा.सुरेश भी उसी बस्ती में रहता था . सुरेश की पत्नी को गुजरे तीन -चारसाल बीत चुके थी उसके भी कोई संतान नही थी . जब सुरेशनेअम्बा को गोदलेने के लिए कहातो बस्तीवालों ने सबकी रजामंदी से अम्बा को सुरेश कोसौप दिया.
सुरेशशराब की भट्टी में काम करता था. उसने कुछ दिन तो अम्बा का पालन -पोषण अच्छी तरह से किया लेकिन धीरे -धीरे उसने अपना असली रंग दिखाना शुरूकर दिया . सबसे पहलेउसने अम्बा का स्कूल जाना बंदकर दिया और उसे एक होटल में बर्तन साफ़ करने के काम पर लगा दिया . मात्रआठ-नौसालकीअम्बा रोज सुबह से साम तकहोटल में लोगो के झूठेबर्तन साफ़ करती . होटलपर काम करने के जो पासे उसे मिलते थेवे सब पैसे सुरेश उससे छीन लेताऔर अपनी ऐय्याशीजुए शराब में उड़ा देता था. अम्बाअक्सरस्कूल जातेबच्चोंको देखाकरती ... स्कूल जाते बच्चों को देखकरउसके मन में भी स्कूल जाने की बहुत इच्छा होती . एक दो बार उसने सुरेश सेस्कूल जाने की बात भी की थी . इस पर सुरेश ने उसे बड़ी बेरहमी से पीटा ..पिटाई के भयके कारण उसने फिर कभी सुरेश से स्कूल जाने के बारे में कुछनहीं कहा लेकिन जब भी उसे थोड़ाबहुत समय मिलता वह पास ही के एक सरकारीस्कूल में चली जाती वहाँ जाकर कुछ पढना-लिखना सीख रही थी .उस स्कूल केएक मास्टर अनुराग जी उसे अच्छी तरह सेजानते थे . मास्टर जीउसकी मालीहालत और सुरेश के बारे मेंभलीभाती जानते थे. जब उन्होंने देखा किअम्बाके मन में पढने -लिखने की लगन है . यहदेखकर वे उसे अक्सर पढ़ा देते थे .चोरी -छिपेअम्बा ने थोडापढना -लिखना सीख लिया था . समय अपनी तेज़गती से भागा जा रहा थामानो जैसेउसेपंख लग गए होदेखते ही देखतेआठ -नौ साल कीअम्बा अपने सोलहवेसाल में प्रवेश कर चुकी थी.
एक दिन की बातहै सुरेशअम्बा को अपने साथलेकर एक आदमी के पासलेकर गया, सुरेश अम्बा कोजिस आदमी के घरलेकर गया था .देखने में तोवह आदमीएक सेठ कीतरह लग रहा था.अम्बा उसके साथ चली तो आई लेकिन उसे बहुत डर लगरहा था .सुरेश ने अम्बा को बताया कियह सेठ जी हैं और इनकाकपड़ो काबहुत बड़ाकारखाना हैं . तू अब इनकी मिल में काम करना और ये तुम्हेवेतनभी ज्यादादेंगेऔरवेतनके साथ -साथ खाने को खाना और रहने के लिए घर भी .अब तुझे उस गंदी बस्ती में रहने की ज़रूरतनहीं .ज्यादातनख्वाहऔर एक अच्छाघर मिलने कि खबरसुनकर अम्बा थोड़ा संकुचाई ......पर बाद मेंउसने सेठ की मिल में काम करने के लिए हामी भर दी . अगले ही दिनसे अम्बा ने कपड़ा मिल में काम करनाशुरू कर दिया . मिल में वह मन लगा कर कामसीखने लगी. उस मिल में और भी बहुत सारी लड़कियांकाम करती थी.यहाँ परकुछ ही दिनों में वह सब सेहिल मिल गयी और उनसे दोस्ती भी कर ली थी . धीरे -धीरे समय बीतने लगा .
कारखानेकासेठ अक्सररात कोशराब केनशे में आता और उन लोगों से गालीगलौच कियाकरतागाली -गलौच तक तोठीक था लेकिंग दिन प्रतिदिन उसकी हरकतेअश्लील होती जा रही थी . उसकी इनहरकतों सेशुरू मेंअम्बा को लगा किशायदवो काम ठीक से ना होनेकी वजह सेऐसा करता हैं, परजैसे -जैसे समय बीतता गयाअम्बा को समझने में देरीनहीं लगी कि सेठ कीनीयत में खोट है ....वहसब शराबके नशे में नहीं करता बल्कि ऐसा करनेकाकारण और कुछ है . असल मेंवह कपड़े केकारखाने की आड़ मेंवैश्यावृति का धंधा करता था .गरीबबेसहारालडकियों को कामदेने के बहाने लाकरकुछ दिन तक अपनेकपड़े कीमिलमें काम करवाता फिर जबरन उन्हेंवैश्यावृति के गंदे दलदल में धकेल देता .उसने न जाने कितनी मासूम लड़कियों के जिस्म का सौदा कर दलाली खाई थी .. जोलड़की उसकी बात नहीं मानती उसे बहुत मारता -पीटा . जब तक वे उस कामके लिए राजी नहीं हो जाती तब तक उनका खाना -पानी सब बंद कर देता .... .... भूखीप्यासी लड़कियों को मजबूर होकर वह घिनोना कार्य करना पड़ता था .
सेठके इनसब कारनामों की जानकारी अम्बा को बहुत दिनों के बाद पता चली .लेकिन वोअपनेआपको बहुत बचाकर रखे हुएथी. यह सब जानने के बाद तो वहफूंक -फूंक कर कदम रखने लगी.एक दो बार उस सेठ ने अम्बाजबरन इस धंधे में धकेलनेकी कोशिश की लेकिन अम्बा ने साफ़-साफ़ मना करदिया .सेठ ने उसे अधिक से अधिक धन का लालच भी दिया लेकिनसाफ़-साफ़ माना कर दिया .अम्बा के मनाकरने पर सेठ ने उसकीपिटाई भी की कई दिनों तक भूखा-प्यासारखा.लेकिंन मार खाकर, भूखी -प्यासी रहकरभी अम्बाउस गलतकाम केलिए राजी नहीं हुई . सेठ के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे .एक दिन अम्बा ने उस घर से भागने किकोशिश भीकी, लेकिन नाकाम रही . जब सेठ को इस बात का पता चला तो सेठ नेउसके दोनोंपैरों को गर्म सलाखों से दाग दिया .....कई दिनों तक अम्बादर्द और जलनसे चीखती रही लेकिन वहाँ उसकी सुनने वाला कोई नहीं था . सेठ ने उसे एककमरे में बंद कर दिया उसके लिएवह घर जेल के सामान हो गया था .. सप्ताहभरभूखी -प्यासी रहने के बाद भी अम्बा ने हिम्मत नहीं हारी...वह वहाँ से किसीन किसी तरह भागना चाहती थी .
आखिरकार एक दिनउसेवहमौकामिल ही गया उसने बिना समय गवाए मौके का लाभ उठाते हुएउस घर से भाग आई . घर से तो भाग आई लेकिन अब कहाँ जाए अगरवह अपने घर जहाँ सुरेश रहता है वहाँ गयी तो वह उसे बहुत मारेगा और फिर सेजबरन उस सेठ के पास ले जायेगा . यही सोच रही थी कि कहाँ जाए तभी उसकी नज़रदूसरी तरफ सेआते हुए मास्टर अनुराग पर गयी . वह तुरंत भागकर अनुराग के पास गयी . अम्बाको घबराई हुई देखकर उसने उसके घबराने का कारणपूछा . अम्बा की बात सुनकरपहले तो उसे विश्वास नहीं हुआ की को इतना बड़ा नामी व्यक्ति ऐसाघिनौनाकाम भी करसकता है . अम्बा ने उन्हें बताया कि वह एक अकेली ऐसी लड़की नहीं हैऔर भीबहुत सी लड़कियां हैं जो उस धंधे में जबरन धकेली जा रही हैं . वह उन सब कोभी बचाना चाहती है . अनुराग को अम्बा पर पूरा विश्वास थाउन्होंने उसकीसहायता करने का वादा किया .कुछदिनों बादउसने मास्टरजी के साथ जाकर पुलिस थाने जाकर उस सेठ के खिलाफशिकायत दर्ज करवाई . पहले तो पुलिस को भी उसकी बातों पर यकीन नहीं हो रहाथा पुलिस को लग रहा था कि वह लड़की एक नामी व्यक्ति पर बेबुनियादी आरोप लगारही है. लेकिन जब मास्टर जी ने अम्बा का समर्थन करते हुए पुलिस पर दबावडाला तब जाकर पुलिसने उनकी शिकायत और सुनाक्त परउस कंपनी पर छापा मारातो पुलिस भी यह देखकर दांग रह गई . वहाँ पर बंद लड़कियोंको भी मुक्त कराया .मास्टर जी और पुलिस कीमदद से उसने उस सेठ काअसलीचेहरा समाज के सामने लाकरउसकाभांडा फोड़ दिया.पुलिस ने सेठ को उसके बंगले से गिरफ्तार कर जेलभेज दिया . . जिस कारखाने के आढ़ में यह काला धंधा चल रहा था वहकारखानाभी सील कर दिया गया .
कारखाने के बंद होने से अब अम्बा के सामने एक सबसे बड़ी समस्या आन खड़ी हुईकि अब वह क्या करेफिर से नौकरीकी तलाश .... पहले जिस होटल में वह कामकरती थी उस होटल में कामके लिए गयी , लेकिन होटल के मालिक नेउसे दुत्कार कर निकाल दिया. बिनाकामके वह क्या करेवापस घर भी नहीं जा सकती थी, अगर घर वापस जाएगीतो सुरेश उसके साथ न जाने क्यासलूक करेगा , हो सकताहै कि फिर वह उसे बेरहमी से पीटे और फिर कही ज़बरन किसी ऐसे काम पर लगादिया तो वह क्या करेगी ....? रहने के लिए घर नहीं खाने के लिए भोजन नहींमें वह करे तो क्या करे ..... तभी उसे मास्टर अनुराग का ध्यान आया वहसीधेउनकेपास गयी औरउनसे अनुरोध किया वे उसे कहीकाम दिलवा दे . मास्टर जी ने उसे समझाया किअगर वहथोडा -बहुतपढ़ लिखले तो उसे ऐसी –वैसीजगहों परकाम करने की कोई जरूरत नहीं रहगी और वह भीएक सम्मान जनक जीवन व्यतीत करसकतीहैं. मास्टर जी का सुझाव अम्बा को पसंद तो बहुत आया पर उसने अपनी आर्थिकस्थितियों के बारे में मास्टरजी को बताया. मास्टर जी के समझानेपरअम्बा नेउनकी बात मान ली .
अगले ही दिन मास्टर जी अम्बा को अपने मित्र श्याम जो कीसे मिलाने के लिए लेकर गए जो कि एक नर्सिंग ट्रेनिंगइंस्टिट्यूटचलाते थे जिसका नाम “मानसी” था , जहाँ पर गरीब, बेसहारा बच्चों को नर्सिंग कोर्स का प्रशिक्षण दिया जाता था.इससंस्थामें दाखिले के समय पाँच हजार रुपये के रूप में सुरिक्षत धन राशी जमा करवाई जाती थी .कोर्स करने के बादजब उन बच्चोंको नौकरी मिल जाती थी तो उनके पाँच हजार रूपयेउन्हें वापस लौटा दिए जाते थे .लेकिन अम्बा के पास तो फूटी कौड़ी तक न थी, फीस कहाँ से जमा करती . मास्टर जी नेफीस के संदर्भ में श्याम जी से बात की और उन्हें अम्बा की आप बीती सुनाई और उन्हें समझाया कि वह एक शरीफ और होनहारलड़की है. वे उस पर भरोसा करके उसे अपनेट्रेनिंगइंस्टिट्यूटमेंदाखिला दे सकते हैं . मास्टर अनुराग जी केआश्वासनपर फीस माफ़ कर दी गई और उसे दाखिला दे दिया गया. अम्बा वहां उनकेहॉस्टल मेंही रहकरनर्सिंग काकोर्स करने लगी . उसनेनर्सिंग कीसभीपरीक्षाओंमें प्रथम स्थान प्राप्त किया . परीक्षा में अपने आपको प्रथम स्थान पाकरउसकी ख़ुशी काठिकाना न था.अम्बा के कठिन परिश्रम और लगन को देखते हुएश्याम जी ने उसे एक अस्पतालमेंनर्स के काम पर लगवा दिया .अम्बा मेहनती तो पहले से ही थी. अपने उच्चआचरणऔर मेहनत के कारण वह कुछ ही दिनों में अस्पताल में सबकीचहेती बन गयी.
अम्बा जिस प्यार और अपनेपन की भावना के साथ रोगियोंकीसेवा करती, उसी भावनाके साथ उनकी देख भालभी करती . अम्बा की सेवा और लगन से बहुत से मरीज़अच्छे होकर अपने घर लौट जाते .अस्पताल से जो भी मरीज़ ठीक होकर जाता वहअम्बाको आशीष देते हुए जाता . अम्बाभीउन लोगों के आशीष को पाकरफूली न समाती.वह दिन प्रतिदिन यही प्रयासकरती किअपने मरीजों को बेहतरीनसेवा दे सके . अस्पताल में नौकरी के बाद भीवह अपने अतीत को भूली नहीं थी . उसके मन मेंसदैव कुछ औरअच्छा करने की चाह रहतीथी, लेकिन उसे समझ में नहीं आरहा था की आखिर वह हैक्या ....?जिसे वहपूरा करना चाहतीहैं.
एक दिन की बात हैजब अम्बा अस्पताल से घर जा रही थी, रास्ते मेंउसने देखा की एक व्यक्तिदो ढाई सालकी बच्ची कोबुरी तरहमार रहा हैं. लड़की को मार खाता देखकर वहउसके पासगयी और उस आदमी कोरोकना चाहा,लेकिन उस आदमी ने उसे धक्का देकर दूर धकेल दिया और कहा तुम अपना काम करोहमारे घरेलू मामलों में दखल मत दो . उस दिन तो अम्बा वहाँ से चली गयी लकिनउसका मन उस मासूम बच्ची के पास ही था . उस रात वह ठीक से सो नहीं पायी रह -रह कर उस बच्ची का रोता -चीखता चेहरा दिखाई देता रहा . जैसे ही सुबह हुई .उसने फिर से उस जगह जाने का फैसला किया . सुबह -सुबह वह वहाँ पर पहुँचगयी . काफी पता करने केबाद मालूम चला की जिस लड़की को कल शाम वह आदमी मार रहा था वहउस बच्ची कोकही से उठा कर लाया था और उसे बेचना चाहरहा था . इस प्रकार की घटना कोजानकर अम्बा ने तुरंत पुलिस को फोन किया . थोड़ी देर में पुलिस भी मौके परपहुँच गयी और उस आदमी को गिरफ्तार कर जेल ले गयी . पुलिस आरोपी को तो थानेले गयी लेकिन उस मासूम बच्ची को अम्बा कि गोद में ही छोड़ गयी .
जबअम्बा नेउस बच्ची को देखा तो उसेअपनी बूढी अम्मा की बहुत याद आईअम्मा को यादकर उसकीआँखेंभर आयीं . थोड़ी देर बाद वह स्वयं हीउस बच्ची को लेकर पुलिसथानेचली गयी औरउसनेपुलिस से निवेदनकिया की जब तकइस बच्ची के माता - पिताके बारे मेंकुछपतानहींचल जाता क्या वहउसको अपने घर पर रख सकतीहैं ? पुलिस ने अपनी कुछऔपचारिकतायें निभाकरअम्बा का नाम - पतालिखकर बच्चीको ले जाने की अनुमतीदे दी . बच्ची को पाकर अम्बा को एकअजीब सा सकूँ अनुभवहो रहा था.कुछ दिनों तक तो वह बच्ची से ज्यादा घुली मिली नहीं जब समयधीरे - धीरे आगे बढ़ता जा रहा था वैसे -वैसे अम्बा उस बच्ची के प्रेम औरलगाव में डूबती जा रही थी .कुछ समय उस मासूम बच्ची के साथ बिताकरउसेसमझ में आ रहा था किउसका दिल जो बहुतदिनों से चाहरहा था, शायदवहयहीहैं, अम्बा ने उस बच्ची को वह सारी खुशियाँ देनेकाफैसलाकिया जो उसे कभी न मिल सकी थी .उस बच्ची के आने से अम्बा के जीवन में एकअनोखी रोशनी सी छा गयी थी . वह उस बच्ची का एक माँ की तरह ही ख्याल रखती .उस बच्ची के आने से उसके सूने पड़े जीवन में के मुस्कान आ गयी थी. उसेजीने का एक मक्सद मिल गया था .इसीलिए उसने उसका नाम मुस्कान रखा . धीरे -धीरे मुस्कान बड़ी होने लगी .अम्बा ने उसेएक अच्छे अंग्रजी माध्यम के स्कूल मेंदाखिल करवाया.मुस्कानके अम्बा केजीवनमें आने से ऐसा लग रहा था जैसे उसके सूने जीवन में मुस्कानसावन की फुहारबन कर मुस्करारही हो . मुस्कान को पाकर अम्बा ने कभी अपने वैवाहिक जीवनके बारे में नहीं सोचा .....मुस्कान के आने के बाद उसे अपने बारे मेंसोचने का कभी समय ही नहीं मिला ...जब कभी थोड़ा -बहुत समय मिलता तो वहमुस्कान के विषय में ही सोचा करती ......दोनों एक दूसरे का साथ पाकरकाफीखुश थे. कभी -कभी अम्बा को डर भी लगता था कि कही मुस्कान के असली माँ -बाप आ गए और वेउसे लेकर अपने साथ चले जायेंगे तो वह मुस्कान के बिना कैसे जीयेगी...?
धीरे - धीरेसमय अपनी तेज गति के साथ चलता जा रहा था . बदलतेसमयकेसाथमुस्कान बड़ी हो रही थी ..और अम्बा भी अब हेड नर्स बन चुकी थी. मुस्कान अबअपनी स्कूल की पढाई पूरी करके कॉलेज जाने लगी थी.धीरे -धीरेउसने अपनेकॉलेज की पढाई भी ख़त्म कर ली . अम्बा ने मुस्कान तो अच्छे संस्कारों मेंपाला था .जब से मुस्कान बड़ी हुयी उसने अम्बा को कठिन परिश्रम करते देखाथा. मुस्कान ने अक्सर अम्बा को उसकीखुशियों के लिए अपनी खुशियों के साथसमझौता करते देखा था . मुस्कान भी बचपन से यही सोचा करती कि वह भी बड़ीहोकर अपनी माँ कीतरहसमाज की सेवा करेगी .अपनी कॉलेजे की पढाई ख़त्म करते ही उसे कई बड़ी -बड़ीकंपनियों से नौकरी के प्रस्ताव आये. उन प्रस्तावों में से एक प्रस्ताव कोस्वीकार कर एक अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी में नौकरी करने लगी . कम्पनी उससेवेतन भी खूब अच्छा दे रही थी ..मुस्कान भी अपनी माँ की तरह हंस मुख औरचंचल थी साथ ही साथ कठिन परिश्रमी भी ... मुस्कान को अपने पैरों पर खड़ीदेखकर अम्बा बहुत खुश थी . उसे लगा कि उसने वर्षों पहले जो जिम्मेदारीअपनेकन्धों पर ली थी वह कुछ हद तक पूरी हो गयी .. अब उसे मुस्कान के विवाह कीचिंता सताने लगी ....
मुस्कान ने कुछ वर्षों तक उस कंपनी में मन लगाकर मेहनत सेकाम किया. लेकिनउस काम को करके वहसदा असंतुष्ट ही रहती . वह कुछ ऐसा करना चाहती थी जिससे समाज और लोगों कीसेवा हो सके ... एक शाम वह अपने ऑफिस से घर जा रही थी . रास्ते में उसेएक व्यक्ति भीख मांगते नज़र आया ... उसने उससे कहा कि तुमभीखक्यों मांगते हो, कुछ काम क्यों नहीं करते ... मुस्कान की आवाज सुनकर उसभिखारी ने इशारों में बताया कि वह बोल नही सकता ...और कोई उसे काम पर नहींरखता ..सब उसका मजाक बनाते हैं ... भिखारी की कही एक एक बात मुस्कान समझगयी.उसने उस भिखारी को कुछ पैसे दिए और घर चली गई ...समय आगे बढ़ रहाथा उसी समय के साथ मुस्कान भी आगे बढ़ रही थी .. कम्पनी में काम करते -करतेउसे तीन साल बीत चुके थे... एक दिन अनायास ही वह अपनी एक सहकर्मी सहेलीके घर चली गयी .... सहेली की एक बड़ी बहन थीजो बोल और सुन नहीं सकती थी ... जब मुस्कान उसके घर गयी थी तभी उसके बहन इधर - उधर घूम रही थी . उसकीमाँ उसेबहुत डांट रही थी ...भला -बुरा कह रही थी , उसके जन्म को लेकर उसेकोस रही थी ...... बाद में उसेले जाकर उसकेकमरे में बंद कर दिया ... यह देखकर मुस्कानको बहुत दुःख हुआवहमन ही मन सोचने लगी किइनलोगों की ज़िन्दगी भी क्या है ...क्यों लोग इन्हें इंसान नहीं समझते ...येभी इंसान है ....इन्हें भी सम्मान से जीने का अधिकार है फिर ...? उसीदिन से मुस्कान नेऐसे लोगों की सहायता करने का निर्णय किया
इसीलिए उसनेएक दिन उसने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया ... उसके इसफैसले से अम्बाथोड़ी दुखी तो हुई, लेकिन जब मुस्कान ने अपनी नौकरी छोड़ने का कारण बताया तोवह बहुत खुश हुई . समाज सेवा के उद्देश्य से उसने एकस्कूल शुरूकिया.एक ऐसा स्कूल जो मूक बधिर बच्चोंके लिए था.स्कूल तो शुरू कर दियाबच्चे कहाँ से आयेंगे ... ? स्कूल को चलाने के लिए धन कहाँ से आएगा. यह एकविकट समस्या मुस्कान के सामने थी .इस नेक कार्य के लियेउसने अपनी सब जमापूंजीस्कूल में लगा दी थी .इसके बाद एक और समस्या यह आन खड़ी थी कि वहलोगों कोकैसे समझाए कि मूक-बधीर बच्चे भी समाजके अन्य लोगों की तरह ही होते हैं . हमें उन्हें हीनभावना से नहीं देखनाचाहिए..
उस नेक कार्य में आने वाली बाधाओं का सामना करते हुए मुस्कानअपने कार्य को चला रही थी ..अपने स्कूल मेंबच्चों के लिए वहगाँव - गाँवछानबीन कर के ऐसे बच्चों को ढूंढ़तीजोमूक और बधीर है ..वहउनके माता-पिताकोसमझाती , उन्हेंमनातीकि यह बच्चे भी आगे पढ़ सकते हैं. ज्यादातरमाता पिता ऐसे बच्चों कोउनकेही हाल परछोड़देते थे, पर मुस्कानउन्हें अपने साथ ले आती और अपनेपास रखतीउन्हें पढ़ाती .. धीरे -धीरे स्कूल में बच्चे बढ़ने लगे .शुरू -शुरू मेंतो मुस्कान को काफी आर्थिक समस्याओंका सामनाकरना पड़ापरउसने हिम्मत नहीं हारी . वह अपने काम को यथावत चलायेहुए थी .धीरे -धीरे उसकेइस काम की सराहना होने लगी .उसकी सहायता केलिएलोगहाथबढाने लगे .देखते ही देखते मुस्कान उसकी इस नेकमुहीम से हजारो लोग जुड़ गए . मुस्कान उस स्कूल कीप्रिंसिपलबन गयीथी.जीवन केजो आदर्शउसनेअपनी माँअम्बा से पाएथे. उन्ही आदर्शों पर वह भी चलने का प्रयास कर रही थी .. . अम्बा भीमुस्कान के इस काम से बहुतखुशथी. मुस्कान ने उन बच्चोंके लिए अलग अलग तरह कीमशीनोंकाइंतज़ामकियाजिससेवे बच्चे पढ़ सके.धीरे धीरे मुस्कान समाज के उन असहाय लोगों केहोठों कीमुस्कान बन गयी जिन्हें समाज बेकार समझकरनकार देता था , मुस्कान ऐसेलोगों को अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बना देती , उन्हें समाज में एकनागरिक होने का गौरव प्रदान कराती ... उनके हकों के लिए आवाज़ उठाती .....
जैसेएक दिन अम्बा ने बूढी अम्मा केजीवन में खुशियाँ बिखेरी थी वैसे ही आज मुस्कान ने अम्बा के जीवन को धन्यकर दिया .... आज वह केवल अम्बा की मुस्कान नहीं सब लोगोंकी मुस्कान होगयी है...खासकरऐसे लोगों कीजिन्हें परिवार , समाज के लोगोंने बेकारसमझकर दुत्कार दिया था ....