Followers

Wednesday, October 21, 2009

तेरा साथ

तुझसे मिलने का मैं हर पल ढूँढू रोज नया बहाना।
हर शाम तेरे साथ गुजारने का मैं नित ढूँढूं नया बहाना।
पास अपने रोकने का मैं नित ढूँढू नया बहाना।
जो शाम मेरी तुझसे मिले बिना गुजर जाए उस रात मुझे नींद भला कैसे आए।
तेरे आने की नित राह यूँ निहारु जैसे प्यासा मयूर बदरा को।
काँटों भरी राह पर भी मैं ढूँढू तुझसे मिलने का नया बहाना
दुनिया को दिखाने को अब मैं हँसने का बहाना ढूँढता हूँ।
तेरी याद भुलाने के लिए अब मैं ढूँढू कोई नया बहाना।।

बेरहम दुनियाँ में अब मैं जीने का सहारा ढूँढता हूँ
अब तो तेरी याद भुलाने को मैं मरने का बहाना ढूँढता हूँ
मरकर भी किसी मोड़ पर अगर तू मिल जाए
तुझे देखकर मैं खुशी-खुशी इस जहान से विदा हो जाऊँ।।

1 comment: